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स्थिति के प्रति नफरत ही आर्तध्यान की प्रथम सीढ़ी है । दृढ़ प्रहारी ने परिस्थिति को स्वीकार किया और मोक्ष को प्राप्त किया। “जिस दिन मुझे मेरा पाप याद आएगा उस दिन मैं भोजन नहीं करूंगा।” और क्षमा धारण करुंगा । दृढ़ प्रहरी ने साधु जीवन
स्वीकार करने के बाद यह प्रतिज्ञा ली थी। * रोग - वियोग प्रणिधान - रोग को समभाव से सहन करना यह कर्म को दूर करने का
श्रेष्ठ उपाय है। * दर्द जहाँ हैं वहीं रखो, मन तक न आने दो । उसको खुशी से सहन करो। * शरीर की ममता को कम करने के लिए - 1. अनित्य, 2. अशरण, 3. संसार, 4.
एकत्व, 5. अन्यत्व, 6. अशुचि, 7 आश्रव, 8. संवर 9. निर्जरा, 10. लोक स्वभाव, 11. बोधि दुर्लभ, 12. धर्म स्वाख्यात आदि भावनाएँ उपकारकर बनती हैं।
'मनोविजय और आत्मशुद्धि' (पुस्तक से....) गुणों में सुख का अनुभव नहीं होता - तब तक मन उसको सुख का साधन मानने को तैयार नहीं होता । इसलिए मान्यता' नहीं बदलाती है।
___ 'सुरनर पंडित जन समझावे, समझ नहीं मारो सालो' आनंदधनजी ने गाया है . मन सबको समझाता है परन्तु स्वयं को कौन समझाएँ ? * मनोविजय की साधना की 5 सीढ़ियाँ :1. श्रद्धा :- पंगु मन से ज्यादा आत्मा की प्रबल शक्ति में विश्वास। 2. संकल्प बल :- 'मुझे मन को जीतना ही है' संकल्प। 3. संवेग :- निरंकुश मन के तूफान - वासना - विकारों से उद्वेग प्राप्त करना, वैराग्य का
राग।
4. समझ :- मन को समझाना और कबूलात से उसे कंट्रोल में करने की Technique। 5. साधना :- मनोविजय के आलंबन या अनुष्ठान में निरंतर प्रयत्नशील, पुरुषार्थ और
ज्ञान चिंतन चालू रखना।
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