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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©GOG मन को जानो, मन को समझो (पुस्तक से) प. पू. कीर्तियशसूरीश्वरजी म.सा. आत्मा भावयुक्त कैसे होती है ? चित्त भ्रमण करता रहता है, विचरण करता रहता है, उसे विचार कहते हैं । उस विचार को चिंता' कहते हैं । चित्त कहो या मन कहो, सामान्य रुप में दोनों का एक ही अर्थ है । चित्त की ‘अस्थिर' अवस्था 3 भागों में विभाजित है : 1.चिंता (चिंतन), 2. भावना और 3. अनुप्रेक्षा। ध्यान चित्त की स्थिर अवस्था है। एक ही वस्तु से आत्मा भावित होती है, इसी तरह बारंबार विचार आते रहें वह भावना है। एक ही बात को बड़ी चाह से पुन: पुन: विचार करने से आत्मा भावित होती है । चिंतन करते-करते भावना में मन घिर जाता है और अधिक सूक्ष्म बन जाता है । जिन विचारों से मन भावित हुआ हो उसी के एक मुद्दे Point पर मन स्थिर हो जाता है । उसे ध्यान कहते हैं। इस ध्यान से बाहर आने के बाद ध्यान के प्रभाव के कारण चिंतन के गहरे विचार में गहराई आए, बढ़ जाते हैं, विस्तार बढ़ता जाता है और जिस सूक्ष्मता की तरफ आगे बढ़ते हैं वह है अनुप्रेक्षा । अनुप्रेक्षाध्यान बाद की अवस्था है। __ मन एकाग्र होता है तब आत्मा का उपयोग किसी भी एक विषय पर स्थिर हो जाता है। अन्य विषयों से दूर हो जाता है। इसी को ध्यान कहते हैं। 5 इन्द्रियाँ स्वयं का काम करती हैं तब आत्मा का उपयोग मन द्वारा इसके साथ जुड़ जाता है । इसी से नाक सूंघता है, आंख देखती है, कान सुनते हैं आदि । आत्मा का उपयोग नहीं जूड़ता है तो चाहे कितना ही चिल्लाकर आवाज दे तो भी नहीं सुनाता और जब जुड़ जाता है तो धीरे से कोई बोले तो भी सुना जाता है। अनु = पीछे से, प्र = प्रकर्ष और ईक्षा = देखना। ध्यान में से बाहर आने के बाद गहराई से हर प्रकार से विचार करना वह अनुप्रेक्षा । 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO 179 GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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