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मानव मन की मोनोपॉली (Monopoly) क्या है ? मानव मन उच्च से उच्च और नीचे से नीचे भाव प्रयाण कर सकता है । देव भव के मन में दोनों किनारे तक जाना संभव नहीं है । शुद्धि और अशुद्धि के चरम शिखर का स्पर्श करने की मन की प्रबल शक्ति सिर्फ मानव भव में है । मन के रहस्यों को जो समझ लेता है तो इस मानव भव को सफल किया जा सकता है।
मन एक क्षण में पूरी दुनिया में भ्रमण कर वापिस आ सकता है । जो एकाग्रता आ जाए तो मन की शक्ति गजब की है।
द्रव्य मन :- अति सूक्ष्म मनोवर्गणा के पुद्गलों से बना साधन है । द्रव्य मन का आकार और विचार भाव के अनुरुप निरंतर बदलते रहते हैं । द्रव्य मन जड़ है और जबकि भाव मन चैतन्यमय है।
भावमन :- अनंत जन्मों के अनुभवों से उत्पन्न होने वाले अच्छे-बुरे संस्कार या शुभाशुभ भाव भावमन में संग्रहित होते हैं । यह मन मोह के सर्जन का घर और मोह के विसर्जन का साधन है । कषायों से संयुक्त मन वह संसार है और इससे मुक्त होना ही मोक्ष है। कर्म का बंध या निर्जरा वचन/काया की प्रवृत्ति में, जो मन मिले तो ही होता है । इसलिए मन का बहुत महत्व है।
मन मनुष्यत्व जीवन की ज्ञानियों ने बहुत प्रशंसा की है तो देव भव की प्रशंसा ऐसी क्यों नहीं की?
अपने पास ऐसी क्या वस्तु है जो देवों के पास नहीं ? "प्रबल शक्ति युक्त मानव का मन" । वैसे मन तो दोनों के पास हैं परन्तु देवों का मन शक्ति और क्षमता की दृष्टि से बहुत अक्षम है। मानव का मन अनंत शक्ति सम्पन्न है।
विज्ञान जिसको मन कहता है वह BRAIN मन: पर्याप्ति है । जैन परिभाषा में मनोवर्गणा के पुद्गलों से बना हुआ मन BRAIN से बिल्कुल अलग है (जीव ग्राह्यवर्गणा-औ.वै.आ., भाषा, मनो., श्रा., तै., का.)
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