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________________ G हमारी 24 घंटे देह के साथ रहने की आदत पड़ गई है। नींद में कुछ समय के लिए अलग हो जाते हैं परन्तु मन के साथ हमारा संधान 24 घंटा रहता है । मन तो नींद में भी सक्रिय ही रहता है । मन और इन्द्रियाँ पृथक हैं । मन और आत्मा अलग है । किन्तु मन की प्रत्येक प्रवृत्ति आत्मा पर प्रभाव डालती ही है। आत्मा के साथ सबसे अधिक मन का संबंध है । इसके जैसा पुराना संबंध है ही नहीं । अपने संबंध पुराने से पुराने हैं .. .... !! जो मन से गुलाम उसको मोक्ष से जुखाम ... जिसने मन को नहीं जीता उसका जीवन व्यर्थ है । मोक्ष को पाना है तो मन से पार पाना ही पड़ेगा । मन ही मुक्ति की साधना के लिए मुख्य कड़ी है । मानव मन (Flexible) है । जैसे मोड़ना चाहो वैसे मुड़ सकता है । मन का स्वभाव परिवर्तनशील (Changeable) है । 84 लाख जीवायोनि में मानव मन जितनी उत्कृष्ट ऊँचाई या नीचाई तक शक्तिमान होने योग्य दूसरा कोई भव नहीं । यही मानव मन की वास्तविक विशिष्टता है । देवता कितना ही प्रयास कर ले किंतु ऊँच-नीच की सीमा के दोनों छोर तक नहीं पहुँच सकते । मानव मन ही जा सकता है । भाव प्रयाण की Limits Unfathomable है । इसलिए मन के पुरुषार्थ द्वारा आमूल-चूल परिवर्तन हो सकता है । शुद्धि और अशुद्धि के चरम शिखर का स्पर्श करने की शक्ति मात्र मानव मन में ही है । मन चाहे तो एक वस्तु में एकाग्रता भी ला सकता है । अध्यवसाय, आत्मानंद जैसे शब्द भारतीय धर्म के अतिरिक्त अन्य कहीं मिलता ही नहीं । Salvation शब्द मोक्ष का पर्यायवाची मानते हैं । परन्तु Salvation का अर्थ पाप की मुक्ति होती है। मोक्ष में तो पुण्य की भी मुक्ति है । पुद्गलों से अत्यन्त सूक्ष्म ऐसा मनोवर्गणा के पुद्गल से बना साधन ही मन है । जो द्रव्यमन कहलाता है । जड़ परमाणु की रचना से बना हुआ विशेष आकार वाला द्रव्यमन है । 174
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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