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जड़ अणु-परमाणु की रचना में द्रव्यमन, मस्तिष्क अथवा मन:पर्याप्ति, नर्वस सिस्टम, जैविक रसायन, प्रवाही आदि सभी आ जाते हैं।
भाव मन चैतन्य मय है, फिर भी आत्मा से अलग है। 24 घंटे चेतन का उपयोग चलता रहता है उस उपयोग मन को भावमन कहते हैं।
भावमन में क्या-क्या होता है ? * अनंत काल से कई जन्मों के संस्कार संग्रह रुप में पड़े रहते हैं। * कुसंस्कार, अशुद्ध वृत्तियाँ भाव मन में होते हैं। * क्रूरता की वृत्ति या स्वार्थवृत्ति, काम वासना वृत्ति, लोभ वृत्ति। * इस भव की, गए भव की, असंख्य भवों की वृत्ति वही होती है।
अशुद्ध चेतना, विकृत चेतना, मोहात्मक चेतना वह भाव मन है, शुद्धचेतना, ज्ञान चेतना वह आत्मा है। शुद्ध चेतनामय स्वरुप वह आत्मा का स्वरूप है।
भाव मन में शुभाशुभ दोनों भाव हैं । क्योंकि वह अशुद्ध चेतना मोहात्मक चेतना है। शुभ-अशुभ अशुद्ध चेतना के ही भेद हैं।
आत्मा अर्थात् आत्मा के गुण, स्वरुप, स्वभाव, पर्याय सभी आत्मा में ही आते हैं।
भावमन से शुभाशुभ दोनों विकारी भाव समझना । अशुद्ध चेतना अनंतकाल से आत्मा के साथ जुड़ी हुई है । वह बहुत से छुटती है और जब छुटती है तब जीव वीतरागता प्राप्त कर लेता है। जब तक मन को नहीं मारोगे तब तक वीतराग नहीं बना जा सकता । जब भावमन का उच्छेद होगा तभी वीतरागता प्राप्त होगी।
भाव मन में उपयोग मन और लब्धिमन दोनों आ जाते हैं । उपयोग मन ही चेतनामय है। लब्धिमन में चेतना नहीं है।
भावमन अनंतकाल से आत्मा के साथ जुड़ा हुआ है । भाव मन में अगले भव के एवं इस भव के संस्कार, वृत्ति, परिणति, गहरे अंदर पड़े हुए हैं।
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