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G पांच समवाय का रहस्य, आश्रव एवं अनुबंध का संधान, खामेमि त्रिक' की गहरी असर आत्मा की प्रतीति भी करवा देतो आश्चर्य नहीं ....।
‘कर्म निवारण-सत्य समझ' का हार्द जैन शासन के पारितोषिक समान कर्मवाद को प्रस्तुत संकलन में 8 का अंक मिला। 8 उर्ध्वगति का सूचक है। सर्व कर्म निवारण होते जीव भी उर्ध्वगति को पाता है । कर्मवाद कणिकाएं वास्तव में मानव जीवन को सजाने हेतु आध्यात्म की मोती माला है । कर्म रज को दूर करने की जानकारी भगवान महावीर के सिवाय कौन समझ सकता है ? यह रहस्य जैन धर्म की देन है।
प. पू. युगभूषण विजयजी महाराज लिखित ‘मनोविजय एवं आत्मशुद्धि' ग्रंथ में इस “छोटे पंडित” महाराज ने मनोविजय की 5 सीढ़ियाँ, आत्मशुद्धि के बाद ही समकित की प्राप्ति, वैराग्य बिना सकाम निर्जरा नहीं एवं सकाम निर्जरा बिना मोक्ष नहीं आदि आत्मस्पर्शी एवं दिलचस्प विवेचनों को संक्षिप्त रुप से विभागों में संकलित करते हृदय खूब ही अहोभाव का अनुभव करता है यह तो स्वाभाविक ही है ना ?
जैन धर्म पाया और मोक्ष के स्वरूप को ही समझा नहीं तो हमारा अवतार बेकार गया ना? विभाग 10 में उपसंहार सह मोक्ष स्वरुप को समझे, मुक्ति की तात्विक जिज्ञासा ऐसी प्रगट हो कि मोक्ष के लिए एक अनोखी प्यास जगे । ज्ञानी कहते हैं : दिशा बदलो, दशा बदलेगी कैसी अनुपम बात है।
जैन धर्म का साहित्य चार अनुयोगों में विभक्त है । द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, चरण करणानुयोग, एवं कथानुयोग । इस विभाग को कथानुयोग के विविध शास्त्रोक्त दृष्टांतों से श्रृंगारित करने की कोशिश की है । दर्जनों दृष्टांतों को, संकलन की अवधि को ध्यान में रखकर, अधिक दृष्टांतों के साथ न्याय नहीं दे सके तो क्षमा करने की विनंती । एक बात तो कही जा सकती है कि कथानुयोग से वस्तु सरल बनती है। __12वें विभाग में 12 अंगों के विषय में अति संक्षिप्त विवेचन जिन आगम के नमस्कार रुप प्रस्तुत है एवं “जैनम् जयति शासनम्” का नाद आप सर्व के दिलों में भव्य भाव जगाए ऐसी अभिलाषा की चाह रखने का मन हो जाता है । ज्ञानियों ने उत्तम सात क्षेत्रों में जिन आगम का स्थान, जिनालय एवं जिनमूर्ति के बाद दर्शाकर उसकी विशेष प्रतिष्ठा की है। JUULUGU GUGUR 11 MUTH UR