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काम के बिना पंखा, लाईट, पानी के नली चालु नहीं रहना चाहिए, ये हिंसा के बिना नहीं चलते । बिना छना पानी, बिना चारा हुआ आटा, बिना देखी सब्जी ये सारी वस्तु खाने-पीने लायक नहीं हैं। घर का कोई भी भाग (स्थान) निरन्तर भीगा हुआ नहीं रहना चाहिए क्योंकि वहां कांजी सूक्ष्म बादर अनंतकाय वाली वनस्पति उत्पन्न होती है । महान पुण्यवान जीव घर छोड़कर सर्वविरति ग्रहण कर साधु बनते हैं । (संयम)
पुण्यपाल राजा को रात्रि में 8 स्वप्न आए थे । उनका अर्थ पूछने भगवान महावीर की धर्मसभा में पहुँचे । देशना के अंत में राजा ने अपने स्वप्नों का अर्थ पूछा । एक स्वप्न में जीर्णशाला रतो हस्ति था । अर्थात् जीर्ण-क्षीर्ण गिरने जैसी हस्तिशाला में एक हाथी रहा हुआ था। उसकी जगह बहुत संकरी थी। हाथी हिल-डुल नहीं सकता था । पूंछ या सूंड भी यदि हिलाए तो हस्तिशाला की ईंट ऊपर गिरे। पीठ-खुजाले तो दिवाल गिरे।
इस स्वप्न का अर्थ समझाते हुए प्रभु महावीर ने कहा - हे राजन् ! इस स्वप्न में कलिकाल, दुषमकाल का स्वरुप बताया है । पंचम आरे में मनुष्यों का गृहस्थ जीवन बहुत दुखमय रहेगा । जीवन कष्टमय और स्वार्थ-प्रपंच से युक्त होगा । आमोद-प्रमोद के अनेक साधन होते हुए भी शांति या आनंद की प्राप्ति नहीं होगी।
दूसरों के लिए कितना ही करो लेकिन एक न एक दिन तुम थक जाओगे, निराश हो जाओगे । आत्मा ज्ञान से समृद्ध बनती है। जीवन संस्कार से समृद्ध बनता है। ज्ञानी पुरुषों का समागम करो, ज्ञान गोष्ठि करो । मनुष्य घर में रहता है या घर मनुष्य में रहता है । विचार करना । घर में एक कमरा प्रभु के नाम का रखना । जहाँ बैठकर सामायिक, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, सेवा, उपासना करना । ज्ञान की अच्छी पुस्तकें पढ़ना, जिससे जीवन सद् संस्कार युक्त और ज्ञान से समृद्ध बने। ___ घर में रहने वाले को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि एक दिन सदा के लिए यहां से चले जाना है । यह यदि समझ में आ जाए तो दुःख ही न रहे । कुछ ढुल गया, टूट गया, उफन गया, कोई कैसे और कोई कैसे वापरे, वस्तु कोई पैसे पचा गया, तो दुःखी मत हो । यह यदि हो गया तो जीव अणगार बन जाता है। न राग-द्वेष रहे, न कोई प्रतिबंध रहे, नबंधन रहे । जब जाना है, जितनी दूर जाना है वहां आराम से जाया जा सकता है । भाग कर जाने वाला मनुष्य भी किसी घर में से ही पकड़ाता है।
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