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साधना जगत में मन की भूमिका
प. पू. आ. श्री विजय जयसुंदर सूरीश्वरजी म.सा. की वांचना
पुराने समय में आज जितनी सुख सुविधाएँ नहीं थी । इसलिए उनको इकट्ठा करना, संभालना ये उपाधि भी नहीं थी । भौतिक साधन संपत्ति या मूल्यवान वस्तु से मानी हुई सुविधाएँ मन को शांति नहीं दे सकती । आज का मानव इन साधनों के संग्रह से बहुत अशांत है । शांति-प्राप्ति के लिए मनुष्य अब आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित हो रहा है । शांति के लिए एकांत स्थान, उद्यान, ,गुफाएँ, पर्वत की चोटी पर जाकर प्रयोग कर रहा है ।
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ज्ञानी कहते हैं – “जब तक मन में अनादिकाल से बैठा हुआ संसार का आकर्षण दूर नहीं होगा तब तक बाह्य प्रयोग मन को शांति नहीं दे सकते । कषाय बन्द नहीं होते तब तक ये सारे प्रयोग 'राख पर लीपने' के बराबर हैं, अर्थात् व्यर्थ हैं ।
* Those men are richest whose necessities are simplest, whose pleasures are simplest.
आनन्द के विषय बिलकुल सामान्य होते हैं और जरुरतें सस्ती एवं सामान्य, ऐसे मानव सुखी रह सकते हैं ।
ध्यान योग और कायोत्सर्ग जैन धर्म में ही देखने को मिलते हैं । यही परम् शांति का मार्ग है। सच्चे सुख की प्राप्ति का सटिक उपाय है । साधना मार्ग कठिन है, क्योंकि साधना का आधार मन है, मन का निग्रह चंचलता पर कंट्रोल हो तो ही मन आत्मा के साथ बैठने को तैयार हो सकता है। पूरी दुनिया का चक्कर सेकंड के छठे भाग में करने वाले मन को कैसे स्थिर करके रखना यह उपाय विचार करने जैसा है ।
मन स्थिर करने के 3 उपाय
2. मनोनिग्रह (प्रशस्त अनुबंध),
1. मन तृप्ति (अप्रशस्त)
3. सम्यग ज्ञान से मन को समझाना - मनाना ।
मनोनिग्रह साधना का प्राण है । मन की अतृप्ति का शमन कर ध्यान में नहीं बैठा जा
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