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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® तीव्र जिज्ञासा ज्ञान प्राप्ति की थी। संयम ग्रहण किया और विद्या के पारंगत तो पहले थे ही और अभ्यास करते-करते मुख में से ये शब्द निकल पड़े, 'हा मणाहा कहं हूं तो जई न हूँ तो जिणागमो।' हे जिनेश्वर ! तेरे ये जिनागम न होते तो, हमारे जैसे का क्या होता ? जिन धर्म के प्रति श्रद्धा बंध गई । एक समय का जैन धर्म का कट्टर विरोधी ब्रह्मण पंडित ने जिन शासन को उज्ज्वल बनाने हेतु 1444 ग्रंथों की रचना की। 1 पूर्व का अद्भुत ज्ञान प्राप्त करने वाले हरिभद्रसूरि महाराज हुए। सत्चारित्रों को सुनने से जीव के जीवन के अंतर की भावनाएँ जागृत होती हैं । राह भटक गए हैं तो पुन: अपनी सत्य राह पर जाने का मन होता है । मध्य राह में अटक गए हों तो आगे बढ़ने की इच्छा होती है । कथा के नायक रुप हरिभद्रसूरिजी म. की प्रेरणा लेने से जीवन में अनेक परिवर्तन होने लगेंगे ? भद्रिक श्रोता धर्म मार्ग में आगे बढ़ेंगे । जीव को सत्य दिशा प्राप्त होगी। हमारा अंतर भीग जाए ऐसा तत्व ज्ञान प्राप्त होता है। सदुचरित्र श्रवण हरिभद्रसूरिजी ने ललित विस्तराग्रंथ में जीव के 27 गुणों का वर्णन किया है । जीव की सत्य और वास्तविक प्रगति चरमावर्त में प्रवेश होने के बाद होती है। उसके बाद ही जीव धर्म के प्रति आकर्षित होता है और धार्मिक चर्चा उसे रुचिकर लगती है । अच्छे बुरे का भेद वह कुछ अंश में कर सकता है । सद्भावों के प्रति आदर भाव बढ़ने लगता है । पाप छोड़ने की बुद्धि प्रबल होती है, दृढ़ श्रद्धा का सूर्य उदित होता है और जीव का कल्याण होता है । यह सद्प्राप्ति की अनुपम राह ‘सचरित्रों के श्रवण' से होती है। पांचों इन्द्रियों का संयोग यह अनंत पुण्य प्राप्ति के बाद मिली है। एकेन्द्रिय स्थावर काया में जीव अनंत काल तक रहा फिर कुछ पुण्य की प्राप्ति हुई तो - दो इन्द्रिय में रसना (जिह्वा) से भेंट हो गई। इलड़ आदि का भव मिला । असंख्य काल तक परिभ्रमण करने के बाद क्रमश: घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय और श्रवणेन्द्रिय में प्राप्त हुई । श्रवणेन्द्रिय को पांचों इन्द्रियों में श्रेष्ठ बताई है । इसीलिए तीर्थंकर देव महावीर प्रभु को केवलज्ञान प्राप्त होने पर धर्म देशना देना UJJJJJJJJJJU 14 JUJJJJJJJJJJJ
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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