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“चक्की दुंग हरि पणयं” हरिभद्र ब्राह्मण को ये शब्द अच्छे लगे । जाना भूलकर वहां स्थंभित हो गए । सुनने में मन रम गया परन्तु उनको अर्थ समझ में नहीं आया । आर्या क्या बोल रही हैं ? वह समझ न आया ।
ब्राह्मण के दृढ़ प्रतिज्ञा थी कि जिस शब्द का अर्थ मुझे नहीं आए तो जो समझाएगा उसका शिष्य बन जाऊंगा । वैसे वह स्वयं प्रकांड पंडित था । साध्वीजी के उपाश्रय में गया I उनसे अर्थ पूछा - साध्वीजी ने कहा- यहाँ पास में उपाश्रय में हमारे गुरु महाराज हैं वहाँ जाकर पूछ लीजिए। गुरुवर्या याकिनी महत्तरा प्रकांड ज्ञानी ब्राह्मण को पहचान गए थे ।
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दूसरे दिन महापंडित साध्वीजी के उपाश्रय पहुंचे । कल की घटना सुनाई । साध्वीजी भी ज्ञानी थे । शास्त्रीय वाणी का गंभीर अर्थ सामान्य व्यक्ति को, अपात्रता के कारण नहीं दिया जा सकता। इसलिए 'जैन दीक्षा ग्रहण करना पड़ेगी' शास्त्रों का ज्ञान होने के बाद ही ऐसे गहन सूत्रों का अर्थ मिल सकता है । 'शब्दानां अनेका अर्था:' । व्याकरण में अनेक अर्थ होते हैं । किस सूत्र का कौन सा अर्थ किस जगह और कब करना इसलिए गीतार्थ गुरु, आचार्य भगवंत चाहिए । जिनका शुद्ध चारित्र पालन द्वारा, तप और त्यागमय जीवन जीते हों, वे ही अपनी तीव्र बुद्धि के द्वारा गूढ़ अर्थ को बता सकते हैं। गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है। मूंग जिस प्रकार पानी गरम होते ही बफ जाते हैं; उसी प्रकार सूत्र अभ्यास से आत्मा बफ जाती है । उसके बाद गीतार्थ भगवंत सूत्रों का अर्थ बताते हैं । 24 - 24 वर्ष के सतत अभ्यास के बाद शिष्य को पढ़ पर स्थापित करते हैं - अर्थात् सूत्र और अर्थ के ज्ञाता के अनुरुप पद देते हैं । 45 आगम पढ़ने के लिए तो योगोद्वहन करना पड़ता है । कई महीनों तक कठिन तपस्या और क्रियाएं करना पड़ती हैं । आगम शास्त्र सिंहनी के दूध जैसा है। सुवर्ण (सोने) का पात्र ही चाहिए।
पंडित हरिभद्रजी की प्रथम जिज्ञासा और दृढ़ निश्चय जान कर आचार्यश्री के पास भेज दिया । आचार्य ने अपने सामने बैठाया और कहा कि - "इन पंक्तियों का अर्थ जानने के लिए तुमको जैन दीक्षा लेना पड़ेगी । जैन शास्त्रों का अभ्यास करने के बाद तुम स्वयं ही इन पंक्तियों का अर्थ कर सकोगे। तुम शीघ्र ही संयम मार्ग की तरफ प्रयाण करो ।' पंडित को
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