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________________ श्रोतव्यानि सच्चेष्टितानि सत्य और ईष्ट सुनने का ध्येय रखिए जैन दर्शन में जीव को निरन्तर ज्ञान से सुवासित करके वैराग्य की तरफ ले जाने का ! स्वाध्याय का योग तैयार है । प्रत्येक जीवन में कुछ देर के लिए (एकाध घंटा) वैराग्य प्रेरक स्वाध्याय, वांचन-श्रवण अवश्य करना चाहिए । प्रतिक्रमण में सज्झाय ( स्वाध्याय) रखने का कारण भी यही है । सुबाहुकुमार, जंबूकुमार, खंधकऋषि, वज्रकुमार, आदि की संझायें नए-नए शास्त्रीय रागों में गाने से, सुनने से आत्मा ज्ञानवान बनकर सिद्ध होती है । ऐसा श्रवण अपना इहलोक और परलोक दोनों का सुधार देता है । महाराज साहेब कहते हैं : : “व्यापार से भी यह काम जरूरी है। धंधा ही सब कुछ नहीं है, जीने के लिए" सतियों के चरित्र घर को मंदिर बना देते हैं । ‘सती सीता, कलावती, मदनरेखा, चंदनबाला, ऋषिदत्ता, सुलसा, मयणा सुंदरी, आदि जीवन में सहनशीलता, समता, धैर्य, मर्यादा, विनय आदि अनेक गुणों का विकास कर सकते हैं ।' चरमावर्त में आया हुआ जीव स्वयं की सच्ची प्रगति के मार्ग पर विचरण करने लगता है। धर्म के सन्मुख होने पर, शुभ आलंबनों द्वारा जीवन में गुणों का विकास होता है। शुभ का आदर बढ़ता है । अशुभ का आदर घटता है । गुणों के प्रति रुचि बढ़ती जाती है । दोषों के प्रति अरुचि होती है । सद्गुण सुनने के बाद उनका मनन करने से सदाचार का आगमन होता है । सदाचारी महापुरुषों का सानिध्य प्राप्त करने की रुचि बढ़ती है । दुराचारी और दुर्जनों के प्रति अरुचि होती है । सचारित्र, श्रवण करने से विद्वान पुरुषों के हृदय भी परिवर्तन हो जाते हैं । उसको गुरु भगवंत उदाहरण से समझाते हैं । जीवन पथिक को मार्ग बताने वाले शब्द निमित्त बनते हैं । उसका सुंदर उदाहरण है, हरिभद्रसूरिजी । पहले जैन धर्म के कट्टर विरोधी ब्राह्मण थे : I दृष्टांत :- शाम का समय था, हरिभद्र ब्राह्मण जैन साध्वियों के उपाश्रय के पास से गुजर रहे थे । उपाश्रय में से कुछ श्लोक की कड़िया सुनाई दी । 606162
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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