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सत्य जानना है ? सुधर्मास्वामी आर्य जंबू स्वामी को समझाते हुए कहते हैं कि - बुद्धि की निर्मलता, हृदय की सरलता और विचारों की परिपक्वता के बिना सत्य जानने की जिज्ञासा नहीं होती । सच्ची संपत्ति तो निष्परिग्रहता है । ज्ञान-विद्या यही संपत्ति है । * समता से श्रमण बना जाता है । ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण । ज्ञान से मुनि और तप से तापस बना जा सकता है ।
* जीवन कैसा जीओगे ? ऐसा कि तुम्हारे जीवन के लिए अन्य जीव को पीड़ा नहीं होवे । * मनुष्य को दूसरे का सब समझ में आता है । सिर्फ स्वयं का समझ में नहीं आता । सच्चाई से जो बचना चाहता है, वह एक नई भूल करने की तैयारी करता है । भाग्य से सब- कुछ मिलेगा, लेकिन धर्म तो पुरुषार्थ से ही मिलता है ।
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* तात्विक वैराग्य के बिना मोक्ष का द्वार नहीं खुल सकता है । अत: आत्मा में ही सुख है । इस तत्व की अनुभूति, प्रतीति होना प्रारंभ हो जाए वही तात्विक वैराग्य । माता के 3 गुण
भगवती सूत्र सार, शतक - 3, उद्देशक - 10, भाग-1
1. जीव मात्र के प्रति दया भाव रखने की उदात्त भावना ।
2.
जीव मात्र को रोजी-रोटी देने की पवित्र भावना ।
3. सभी जीवों के अपराधों को क्षमा करने की पवित्र भावना ।
* देव गुरु के गुण गाने से, गुणानुवाद करने से उच्च गौत्र का बंध होता है । अगत भाव में उत्तम कुल और उच्च खानदान में जन्म मिलता है ।
* प्रभु के गुण गाने से 'सुस्वर' नाम कर्म का बंध होता है । मंत्रमुग्ध आवाज मिलती है । इसलिए प्रभु के गीत स्तवन की रचना करना, गाते रहना । उपार्जन किया हुआ सब घट जाएगा, परन्तु आत्मा में जो सर्जन हो गया है वह कभी विसर्जन नहीं हो सकता । (हृदय में सरलता और बुद्धि में निर्मलता दिखाई देगी )
* सूरज कभी का उदित हो गया, उसकी किरणें अपने पास आने के लिए खुश है ( तैयार है) । मात्र अपने द्वार खोलने की देर है पंच सूत्र का सार समझिए :
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