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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OG मिलने का ही बड़ा दुःख है ! भूखा अच्छा या तृप्त ? जागृत अच्छा या सुप्त ? । समुद्र विजय और शिवादेवी के दो पुत्र थे । अरिष्टनेमि और रथनेमि । अरिष्टनेमि नेमिनाथ के रुप विख्यात हुए। एक बार श्रीकृष्ण महाराजा की विविध प्रकार के शस्त्रों से भरी आयुधशाला में मित्रों के साथ खेलते हुए पहुंच गए । स्वयं स्नेहिल, शांत और मृदु स्वभाव के थे अत: उन्हें कभी शस्त्र को स्पर्श करने का अवसर ही न आया । प्रथम बार शंख देखा। श्री कृष्ण का पंचजन्य शंख देखा । बहुत बड़ा और सफेद शंख देखकर उठाने का मन हो गया। नेमिकुमार ने शंख को हाथ में उठाया और जोर से फूंक मारी कि - ऐसा लगा कि गंगा में बाढ़ आ गई हो, समुद्र में धुंआधार लहरें उठ रही हो । ऐसा गंभीर नाद सुनकर द्वारिका नगरी की जनता भयभीत हो गई। धनुष का टंकार और शंख का झनकार सुनकर श्रीकृष्ण विचार में पड़ गए कि - यह क्या हो रहा है ? इतने में नेमिकुमार के दोस्तों ने जाकर कृष्ण को कहा कि - आपके भाई ने शंख बजाया ! श्रीकृष्ण दौड़े आए । नेमिकुमार के हाथ में शंख देखकर आश्चर्यचकित हो गए। यदि ये शंख, धनुष उठा सकता है तो चक्र, गदा भी उठा सकता है । कभी मेरे को भी पराजित कर सकता है। देखिए ! मिले हुए का कितना बड़ा दुःख है । हमको कोई हराने वाला नहीं लेकिन एक दिन अर्थी पर सीधे-सपाट सो जाएंगे फिर कभी उठने वाले नहीं है। श्रीकृष्ण विचार करने लगे - अब इसकी जल्दी शादी कर देना चाहिए ताकि घर गृहस्थी का बोझ सिर पर पड़ेगा और चिंता में इसका बल कम हो जाएगा। ___ लग्न (शादी) ये मनुष्य को नचाने की गहन व्यवस्था है। सिर पर चिंता सवार हो गई तो मनुष्य सीधा सपाट हो जाता है फिर सिर ऊँचा नहीं कर सकता । यों अगर देखा जाए तो मनुष्य भगवान जैसा है, परन्तु अपनी स्वयं की आदत से लाचार है। श्रीकृष्ण ने नेमिकुमार के लिए उग्रसेन राजा की लाड़ली, सुंदर, विद्युत जैसी चेहरे की चमक, सुशील, गुणवान, ऐसी राजकन्या राजीमती' की मांग की और संबंध हो गया। GUJJJJJJJJJJJJ 160 TOUJJJJJJJJJ
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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