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सिद्ध भगवंत सुख के भंडार हैं । आचार्य भगवंत आचार के भंडार हैं । उपाध्याय भगवंत विनय के भंडार हैं । साधु भगवंत सहायता के भंडार हैं ।
* पंच परमेष्ठि दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तपमय हैं । सम्यग्दर्शन सद्भावनाओं का भंडार है । सम्यग्ज्ञान सद्विचारों का भंडार है ।
सम्यग्चारित्र - सचारित्र का भंडार है । सम्यग्तप संतोष का भंडार है ।
* सत्संग के बिना विवेक नहीं, विवेक बिना भक्ति नहीं, भक्ति के बिना मुक्ति नहीं, मुक्ति के बिना सुख नहीं ।
कालस्यवेषिपुत्र
पार्श्वनाथ भगवान के शिष्य कालस्यवेषि पुत्र नामक अणगार (मुनि) ने प्रभु महावीर के शिष्यों से प्रश्न पूछे कि निम्न पदों का अर्थ क्या है ?
* सामायिक : - दीक्षा ली उसी क्षण से आयु के अंतिम क्षणों तक समभाव से रहना और नए कर्म नहीं बांधना । यह सामायिक है और सामायिक का अर्थ है ।
* प्रत्याख्यान :- नवकारसी, पोरसी, साढ पोरसी, परिमुड्ड, चउविहार, गंठसि, मुट्ठसि, आदि पच्चक्खाण के नियम रखना, जिससे आश्रव द्वार बंद हो जाए किंचित भी नियम नहीं रखने वाला कैसा भी ज्ञानी क्यों न हो तो भी आश्रव द्वार बंद नहीं कर सकता । * संयम :पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रसकाय के जीवों की रक्षा करना, उसको संयम कहते हैं ।
* संवर :- 5 इंद्रियों एवं मन को समिति और गुप्ति नामक संवर ( आते हुए कर्म को
रोकना) धर्म में जोड़ने का प्रयत्न करना ।
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