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ज्ञानी कहते हैं स्वतंत्रता तुम्हारे पास जो है वह सच्चा सोना है । स्वयं को साधो और अन्य को भी सहयोग दो । सहन करना सीखो । साधु संथारे पर सोते हैं । पराधीन करे ऐसे बिस्तर पर नहीं सोते ।
वृद्धवादिसूरिजी के शिष्य सिद्धसेन दिवाकर महान् थे, महातार्किक थे, प्रखर पंडित और अद्भुत प्रतिभा के धनी थे । उनको बड़े बड़े राजा - श्रेष्ठि आदि मानते थे और उनकी सेवा मिल जाए तो उसे अहोभाग्य मानते थे । राजा की तरफ से सम्मान और सुविधा मिलने से सहनशीलता - प्रमाद में बदल गयी और गोचरी में उपाश्रय में ही मंगवाने लगे । अचानक गुरु का आगमन हुआ, भूल सुधारी, पश्चाताप से दोषों को धो डाले और महान हो गए ।
गर्गाचार्य के शिष्य किसी भी उपाय से, गुरु की गंभीर अर्थ युक्त देशना सुनकर भी नहीं समझे, ऐसे शिष्यों को शास्त्र में 'निर्बल' बेल की उपमा दी है ।
प्रमाद और सुखोपभोग के साधनों से रहना, अभ्यास से दूर करो तीर्थंकर 12 गुण याद करके प्रभु को नित्य 12 खमासमणे देना । हाथ-पांव और शरीर ऐसे मिलेंगे कि तुम स्वस्थ, सुंदर और शक्तिवान बनोगे । तुम्हारा सौभाग्य बढ़ जाएगा। धारा काम कर सकोगे। एक बार खड़े हो जाओ तुमको स्वत: एहसास हो जाएगा ।
‘अब केवलज्ञान लेकर ही जाऊँगा' बाहुबलिजी के समान, 12 महीने तक काउसग्ग ध्यान में खड़े रहे, कितनी धैर्यता, श्रद्धा, अटलता और दृढ़ - इच्छा शक्ति ?
हम 4 लोगस्स के काउसग्ग में ही हिल जाते हैं । भूल-चूक में मक्खी मच्छर हाथ-पांव पर बैठ जाए तो उनकी कयामत आ जाए !
प्रभु कहते हैं - भाव शुभ रखो । बाहुबली जैसा बल मिलेगा, जैन के अतिरिक्त कहीं ‘शाता में हो ?' ऐसे सुंदर शब्द पूछने के लिए नहीं है । ज्ञानी कहते हैं - व्यवहार, और वचन में सच्चे बनना । देना, छोड़ना और निर्वाह करना सीखो। तुम अच्छे रहोगे तो पूरा संघ अच्छा रहेगा । अशांति-उपद्रव नहीं करना । चिल्लाकर नहीं, उदाहरण देकर, आदर्श खड़ा करो और सच्चाई का महत्व समझाओ ।
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