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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©GOGOGOG मतिज्ञान और श्रुत ज्ञान के बीच की दूरी * मतिज्ञान :- इन्द्रिय और मन के द्वारा होने वाला ज्ञान वह मतिज्ञान । - मतिज्ञानी को बुद्धिमान कह सकते हैं। - निमित्त योग से स्वयं उत्पन्न होने वाला ज्ञान। - पर्याय की ग्राहकता सीमित है। * श्रुतज्ञान : - श्रुत ज्ञानी को विद्वान कहा जा सकता है। - श्रुतज्ञान के बिना मतिज्ञान पंगु है। - पर्याय ग्राहकता ज्यादा है। - मानसिक चिंतन जब शब्द रुप में लिखा जाता है, तब वह श्रुतज्ञान कहा जाता है। न्याय शास्त्र की दृष्टि से मिथ्याज्ञान (अज्ञान) और सम्यगज्ञान : जैन दर्शन की यह मुख्य दृष्टि है । जिस ज्ञान से आध्यात्मिक उन्नति होती है वह सम्यग्ज्ञान और जो ज्ञान से आध्यात्मिक पतन हो वह मिथ्याज्ञान । सम्यग् दृष्टि जीव को भी संशय होता है, भ्रम होता है, अधुरा ज्ञान हो जाय तो भी हठाग्रह रहित और सत्य गवेषक होने से विशेष दर्शी, ज्ञानी का आश्रय लेकर अपनी भूल सुधारने के लिए सदा तत्पर रहता है। भगवान कहते हैं-पल में बिजली की चमक में मोती पिरो लेना चाहिए। यदि चूक गये तो चूकते ही जाओगे । गर्गाचार्य के शिष्य रस में, स्वाद में, आराम में, वाह वाह में और शरीर के सुख में लीन हो गए थे। ऐसे महान् आचार्य के शिष्यों ने शिथिलता में सब कुछ खो दिया। __ श्रद्धा, ज्ञान, चारित्र और तप से सिद्धि या समृद्धि ऐसी प्राप्त होती है कि सुई के नुक्के जैसे छिद्र से बाहर निकला जा सकता है। तुम अपने शरीर को लाख जोजन जितना लंबा कर सकते हो और अणु जैसा छोटा भी कर सकते हो । पानी पर चल सकते हो और तो और धरती पर डुबकी लगा सकते हो। शिष्य नागार्जुन के सिद्ध रस धातु को सोना बना रहा था किन्तु गुरु की तप सिद्धि ने उनके मूत्र से पत्थर को सोना बना दिया। 90909090090909090509090900 15009090909090905090900909090
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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