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मतिज्ञान और श्रुत ज्ञान मतिज्ञान और श्रुतज्ञान दोनों मन और इन्द्रियों द्वारा होता है । मनयुक्त चक्षु आदि इन्द्रियों से रुप आदि विषयों का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है वह प्रत्यक्ष मतिज्ञान है।
मन से सुख आदि की संवेदनता होती है वह मन:स्थिति प्रत्यक्ष ज्ञान है । मन से तर्क वितर्क - विचार - स्मरण, अनुमान जो होता है वह परोक्ष मतिज्ञान है।
प्रत्यक्ष मतिज्ञान के 4 भेद __ 1. अवग्रह :- अव्यक्त दर्शन के बाद अवग्रह होता है, रुप, स्पर्श आदि का आभास होना वह अवग्रह।
2. ईहा :- संदेह होने पर उसको जानने की विशेष जिज्ञासा होना। दा.त.-यह मनुष्य होना चाहिए-यह वृक्ष होना चाहिए। यह मनुष्य बंगाली होना चाहिए। 3. अपाय :- यह मनुष्य ही है, यह वृक्ष ही है, यह बंगाली ही है। 4. धारणा :- संस्कार युक्त ज्ञान वह धारणा (becomes memory) नंदी सूत्र में मति ज्ञान में 4 प्रकार की बुद्धि कही है (टीका by मलय गिरिजी) 1. औत्पातिकी :- विकट समस्या का भी हल खोज निकाले ऐसी तत्काल उत्पन्न सहज
बुद्धि।
2. वैनेयिकी :- विनय, सलीके से अपनी बात रखना। 3. कार्मणिकी :- शिल्प और कर्म से संस्कार प्राप्त बुद्धि वह कार्मणिकी की बुद्धि । 4. पारिणमिकी :- दीर्घ अनुभव से प्राप्त ज्ञान, मति ज्ञान।
श्रुत ज्ञान :- श्रुत अर्थात् सुना हुआ ज्ञान । शास्त्र ज्ञान से उत्पन्न हो वह श्रुत ज्ञान, शब्द जन्य या संकेत सूचक जन्य ज्ञान वह श्रुत ज्ञान ।
शब्द को सुनना यह अवग्रहादि रुप, श्रोनेन्द्रिय का मतिज्ञान है, परन्तु उसेक द्वारा बोध होना वह श्रुत ज्ञान है।
अर्थ की उपस्थिति करावे वह श्रुत ज्ञान
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