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8. शौच पवित्रता :- मन को मैला नहीं बनाना, अच्छी पुस्तकें पढ़ो, संग्रह करो, दूसरों को पढ़ने की प्रेरणा दो । मन को शुद्ध और उज्ज्वल भावयुक्त रखो । प्रभु की वाणी ही मन का मैल धोने का पानी (जल) है। अमिरात स्वयं में है । भाग्य में पुण्य का एकाध बिन्दु अवश्य होगा।
9. अकिंचन :- किंचन = सब कुछ है । अकिंचन = कुछ भी नहीं । अपरिग्रह ! जितना परिग्रह ज्यादा उतना भय ज्यादा । तुम्हारे पास छोड़ने के लिए कुछ नहीं है । सौधर्मेन्द्र मनुष्य भव प्राप्त करने के लिए 23 लाख विमान आये । देव-ऋद्धि छोड़ने के लिए तैयार है।
10. ब्रह्मचर्य :- 9 प्रकार की वाड़ अर्थात् जीवन की प्रतिज्ञा। 10 प्रकार का धर्म पालन करने वाला संसार चक्र से छूट जाता है ।
श्रावक की 11 पडिमा = प्रतिमा :- आनन्द श्रावक, कामदेव, तेतलीपुत्र, कुंडकौलिक, महाशतक आदि उत्तम श्रावक थे। भगवान ने साधु समुदाय के सामने उनकी प्रशंसा की।
महाशतक श्रावक :- 10 उत्तम श्रावकों में एक थे । उत्तम व्रतधारी, प्रतिमाधारी, गीतार्थ और प्रभावक थे । रेवती नामक सुंदर, सुशील कन्या के साथ पाणिग्रहण (शादी) हुआ। फिर भी इतना त्याग करके जीवन धन्य बनाया। भगवान ने प्रशंसा की। ___मनुष्य के पास कितनी ही संपत्ति हो, ऋद्धि-समृद्धि हो, असीम सत्ता, मन चाहा करने में स्वतंत्र, भोग की विपुल सामग्री, कीर्ति के कोट, बल-बुद्धि, पराक्रम, चतुराई का अकूत खजाना, फिर भी अंदर का खालीपन कभी नहीं भराता।
वस्तुत: मनुष्य अंदर से खाली होता है तभी बाहर लेने की बहुत माथापच्ची करता है और सोचता है मैं ही सब कुछ हूँ, मैं कहूँ वैसा ही होना चाहिए । मैं प्रमुख हूँ, वैभवशाली हूँ, सत्ताधारी हूँ किन्तु अंदर से खोखला है । उसको लगता है कि सभी ने मेरी सत्ता का लोहा मान लिया है किन्तु जब वाद-विवाद वाली स्थिति उत्पन्न होती है, उसकी चलती नहीं है तब वो अंदर ही अंदर दुःखी होता है और घुटन महसूस करता है।
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