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जिसने स्वयं का खेत साफ कर रक्खा है, उसके वहाँ वर्षा सफल होगी । वर्षा जैसा कोई दाता नहीं है । पल भर में सब कुछ छलका देता है । प्रभु को पहिचान ने लग जाएं तो फिर परमात्मा दूर नहीं है । प्रभु तो हमारे पास ही है; हम उनसे दूर हो गए हैं। उस अविनाशी का नाद सुनाई देता है, दिखाई देना भी क्षण में संभव है । ज्ञान का परम प्रकाश लाख वर्ष का अंधरा दूर कर देता है ।
जीवन में तुम कुछ समय अपने लिए निकालना, शांति से कुछ समय अध्ययन करना, पढ़ना, स्वाध्याय करना । अहिंसा परम धर्म है । वास्तविक रूप में अहिंसा का स्वरूप समझना है तो जीव - अजीव के प्रकार उसकी उत्पत्ति स्थिति, स्थान, गति - अगति, विकास-अविकास, सब कुछ जानने को मिलेगा । प्रभु केवल ज्ञान प्राप्ति के बाद बहुत सुंदर तरीके से समझाया, “हे गुणावंत प्राणियों ! जो मुझे मिला है वह तुम्हें भी प्राप्त हो और तुम्हारी सारी विपत्ति दूर हो, तुम्हें शाश्वत सुख प्राप्त हो और मुक्ति मिले ।'
जिनमें यह ज्ञान प्रकट हुआ, जिनमें यह पात्रता थी, उन्होंने श्रद्धा, वाणी और धीरता के साथ समझ लिया । तत्वों का अध्ययन किया, मनन किया, चिंतन किया तो उन्हें आनंद की अनुभूति हुई । संसार का स्वरूप समझ में आया - कैसा क्षणिक समय ? कितना शीघ्र बदल जाता है । हाथ में था और पता नहीं कहाँ चला गया ? समय को ढूंढते रहो । एक उक्ति है 'खाक में छोरो, गांव में ढिंढोरो' वाली कहावत चरितार्थ होती है ।
जीवन में तुम भी थोड़ा ज्ञान अवश्य प्राप्त कर लेना । जो तुमको भवोभव समझदार और सुखी बनाएगा । 14 गति, 24 दंडक, 84 लाख जीवायोनि में जीव जन्म लेता है। सुखदुःख के कई प्रकार हैं । जिसका अनुभव भी कई प्रकार से होता है । कितना ही बड़ा मनुष्य हो पर वह भी थक जाता है, मृत्यु प्राप्त हो जाता है, भुला जाता है । इसलिए प्रभु ज्ञान के स्वरूप का बोध कराते हैं । धार्मिक बनाते हैं । प्रभु के साथ हमारा संबंध बन जाता है । पुराना संबंध पुराना ही होता है । धर्म और प्रभु अलग नहीं होते ।
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