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प्रभु की वाणी है - क्षमा के बिना कभी भी कल्याण नहीं हो सकता । जब तक संसार है तब तक दुःख अवश्य है । धर्म की गहनता और आत्मा के गहन चिंतन के मूल में मृत्यु है। इस जीवन के लिए मनुष्य कितना कुछ करता है । सब कुछ करने के बाद अंत सभी यहीं छोड़कर जाना है तो फिर इतना सब-कुछ करने का क्या मतलब ? धर्म के बिना अपना कोई आधार नहीं । संसार गहन जंगल रूप है। छोटी-सी पगडंडी पर सावधानी से चलना है।
नीति और धर्म के अंतर को समझो, नीति में करने न करने की बात आती है। धर्म में होने न होने की बात आती है। * अरिहंत की शरण में जाने से निर्भयता आती है और इसी से समता की प्राप्ति होती है। * सोऽहं, सोऽहं, वह मैं ही हूँ, मैं ही अरिहंत स्वरुप सिद्ध स्वरुप हूँ। यही है सोऽहं का
अर्थ। * जिसका अभिमान करते हैं वह वस्तु भवांतर में नहीं मिलती। * अंदर का खोखलापन मनुष्य ढंकता रहता है; किन्तु उसको गुणों से भरो। : थोड़े भी न देने का कहने वाला दुर्योधन सब कुछ छोड़कर मर गया। * ज्ञान-पंडिताई का बोझ बहुत भारी है, इसको सिर पर उठाकर मत फिरो।
9 :- ब्रह्मचर्य की गुप्ति :- गरिष्ठ भोजन, तृष्णा, त्याग, भोगोपभोग स्मृति वर्जन, विकारयुक्त भोजन न करें । वसति, शयन-आसन, राग-कथा, इन्द्रिय निरोध, श्रृंगार त्याग।
10 धर्म 10 प्रकार का धर्म - क्षमा, मार्दव, आर्जव, अनासक्ति, तप, संयम, शुद्धि, पवित्रता, त्याग, ब्रह्मचर्य।
11. श्रावक की प्रतिमाएं, 12 साधु की प्रतिमाएँ .
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