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* क्षमावीर प्रभु महावीर को देवी उपसर्ग हुए, ग्वाला ने कीले डाले, गौशाला ने अवर्णवाद
किया । जमाई जामाली ने स्वयं को अधिक ज्ञानी बताते हुए मिथ्या मत का प्रचार किया। सब कुछ प्रभु ने मौन धारण कर सहा । चंडकौशिक को भी भगवान ने क्षमा का बोध देते हुए समझाया - सर्प को बोध हो गया और क्षमा धारण कर ली।
धम्मो दीवो पईट्ठा य गई सरमुत्तम :- धर्म ही हमें प्रतिष्ठा (आधार) की गति को उत्तम शरण देता है । धर्म अर्थात् स्वयं का स्वभाव । वत्थंसहावो धम्मो' वस्तु का स्वभाव ही धर्म है । क्षमा, नम्रता, सरलता आदि आत्मा का स्वभाव है । अंगारा पानी में गिरते ही कोयला बन जाता है । पानी बनना, बांस मत बनना । Negative Thinking कभी नहीं करना । Positive दृष्टि का ही सोच रखना । आर्त्त ध्यान के विषय को धर्मध्यान का रूप दे देना । अंतर (हृदय) वैभव का खजाना बहुत बड़ा । इस संपत्ति को देखो, जानो, समझो। यह अनहद, असीम, अपार है। सिर्फ पहचानने की क्षमता का प्रश्न है। 10 धर्म में क्षमा धर्म प्रथम है।
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