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©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® (शौची), त्याग (अकिंचन) और ब्रह्मचर्य ये 10 प्रकार के धर्म आचरण के बिना मुक्ति नहीं
* क्षमा धारण करने से मनुष्य सिंह जैसा हो जाता है । अविनित और कायर पुरुष क्लेशकारी होते हैं । हर बात पर क्रोध करते हैं। ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए। ___ * भगवान का कथन सदा दयामय और हितकारी होता है । कभी हमारी समझ में फर्क हो जाता है, पूर्ण रूप से नहीं समझ सकते, परन्तु यदि श्रद्धा से स्वीकार कर लिया जाए तो संसार सागर से किनारा मिल जाता है, इसीलिए कहते हैं धर्म में श्रद्धालु जीत जाता है।
* काया को प्रारंभ से ही ज्ञान-ध्यान-क्रिया में जोड़ दो। समयानुरूप सभी कर लो उम्र होने के बाद कुछ नहीं होना है। शरीर भी तप-त्याग-क्रिया में शिथिल हो जाता है । प्रभु को नित्य कम से कम 12 खमासणा भावोल्लास के साथ देना चाहिए। कुछ तप अवश्य करना, स्वाध्याय-स्मरण करना, खड़े-खड़े क्रिया करना । इससे भाव शुभ रहते हैं । सामायिक तो कभी भी नहीं छोड़ना । आत्मा को ज्ञान दशा में अनुरक्त रखना । ज्ञान तो भगवान है । ज्ञानी को उच्च भाव आते हैं और शुभ भावों के बल से आत्मा एक क्षण में करोड़ों भवों के पाप क्षय कर लेती है । ज्ञानी कभी हारता नहीं है।
अच्छी प्रकार से यह सब मन में धारण करना, दूसरे के ऊपर दयालु बनकर योग्य व्यक्ति को यह प्रक्रिया सिखाना, देना और तुम महान गुणों के धारक बनना । किसी को धर्म प्राप्ति कराने का प्रयास करना, शासन को कुछ अर्पित करोगे तो तुमको शासन बहुत देगा। ___ मैं और मेरा' यह अंध दृष्टि है । यह भाव मन में न आए इसके लिए ज्ञान का अंजन लगाते रहना । यशकीर्ति के लालच में जीव लालायित होकर न करने जैसे काम कर बैठता है, मनुष्य मर कर भी मनुष्य को परेशान करता है।
स्वयं को स्वयं में रखना जिससे तुमको आत्मा से मिलन होगा । तुम्हारी तुमसे ही मुलाकात होगी। सबसे अच्छी बात यह है कि मनुष्य को दूर का दिखता है, पास का नहीं।
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