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ऋणानुबंध जिस स्थान का और जिस जीव के साथ होगा वहां चुकाना होगा और भवांतर में नियाणा के कारण जीव को वह योनि स्वीकार करना पड़ती है । (भगवती सूत्र भाग - 3 पेज नं. 114 )
* संपूर्ण जीवन में शुद्ध श्रद्धापूर्वक एक ही सामायिक करने वाला श्रावक, एक दिन का चारित्र पालने वाला मुनि, मोक्ष या देवगति प्राप्त कर सकता है तो जीवन के अंतिम श्वांस तक जैन धर्म की, पंच महाव्रत गुरुदेव की और दयापूर्वक जैन धर्म पर श्रद्धा रखने वाले के लिए क्या कहना ?
* ज्ञान में जैसे बाढ़ और चढ़ाव उतार आता है है उसी प्रकार अज्ञान में भी चढ़ाव उतार आता है फिर भी किसी समय अज्ञान का संपूर्ण क्षय हो सकता है किन्तु तब भी ज्ञान का किसी काल में क्षय नहीं होता । इसीलिए निगोद में रहने वाली आत्मा भी ज्ञानयुक्त होती है । सिद्ध शिला में विराजित आत्माएँ भी ज्ञानी हैं। दोनों के ज्ञान का इतना अंतर है कि निगोद के जीवों का ज्ञान अधिक अंश तक ढंका हुआ होता है और सिद्ध जीवों का ज्ञान सर्वथा प्रकाशमान होता है । इस कारण निगोद जीव बड़े अंश में अज्ञानी होते हैं परन्तु केवलज्ञानी और सिद्ध आत्माओं में अज्ञान का अंश मात्र नहीं होता । इसका अर्थ यह है कि आत्मा ज्ञान स्वरूप है ।
सम्यक्त्व प्राप्त नारकी जीवों में ज्ञान का अंश होता है । अन्यथा इसके बिना जो अज्ञानी होते है एवं बार-बार कर्म बंधन करते हैं, भोगते हैं, संसार की वृद्धि करते हैं ।
वस्तुत: जीवन जैसा कुछ भी नहीं है । हम नित्य प्रति थोड़े-थोड़े वृद्ध होते जा रहे हैं। यदि ऐसा न हो तो 100 वर्ष तक बूढ़े नहीं होते और 100 वर्ष धर्म की गहनता एवं आत्मा का गहराई से चिंतन के मूल में मृत्यु बैठी है ।
* सबसे प्रिय सिर के केशों का लोचन कराने में, सबसे इच्छित का त्याग करने से तत्व बुद्धि को पोषण मिलता है । नारी स्वयं के प्रिय और परमात्मा के लिए ही मात्र श्रृंगार करें ।
* क्षमा, नम्रता (मार्दव) सरलता (आर्जव), अनासक्ति, तप, संयम, शुद्धि, पवित्रता
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