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3. दंड
4. संज्ञा
5. क्रियाएँ
संयम
6.
लेश्या
6. कायजीव
7. भय
8. मद
9. ब्रह्मचर्य की वाड़
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3 गौरव (ऋद्धि, शाता, रस) 3 शल्य ( मिथ्यात्व, माया, नियाणा), और 3 गुप्ति (मन, वचन, काया)
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, निद्रा, भय, मैथुन, । कषाय : क्रोध, मान,
शुक्ल । विकथा -
संज्ञाएं : आहार, माया, लोभ, ध्यान = आर्त, रौद्र, धर्म, स्त्रीकथा, देशकथा, भक्तकथा, राजकथा ।
कायिक, अधिकरणीक, प्रदोष, परितापनिक,
प्राणातिपातिक ।
5 अव्रत त्याग, 5 इन्द्रिय जय, 4 कषाय जय, मन, वचन, काया से निवृत्ति ।
कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म, शुक्ल ।
पृथ्वीकाय, अपकाय, वायुकाय, तेउकाय, वनस्पतिकाय,
त्रसकाय ।
इहलोक, परलोक, राजा, पानी, अग्नि, विष, हिंसक प्राणी ।
जाति, कुल, बल, रूप, ऐश्वर्य, विद्या श्रुत, लाभ, तप ।
वसति, शयन-आसन, रागयुक्त कथा, इन्द्रिय निरोध, श्रृंगार त्याग, गरिष्ठ भोजन त्याग, तृष्णा त्याग, भोगोपभोग-स्मृति वर्जन विकार वृद्धि भोजन त्याग ।
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10 प्रकार का श्रमण धर्म क्षमा, मार्दव (नम्रता), आर्जव ( सरलता), अनासक्ति, तप, 17 प्रकार का संयम, शुद्धि, पवित्रता, त्याग, ब्रह्मचर्य और संज्ञाओं में आहार संज्ञा प्रथम छोड़ो, मानव को भूख का दुःख भोगने में आता है तब मनुष्य किस परिस्थिति में क्या कर बैठता है । यह कौरवों की माता गांधारी के विषय में पढ़ने पर रोम-रोम खड़ा हो जाता है।
* जन्म लेने में किसी की इच्छा - शक्ति काम नहीं आती, परन्तु स्वयं का
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