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चोर ने कहा - 'युवराज ! मुझे भी भगवान के पास ले चलो तो तुम्हारा बहुत उपकार होगा। तुम बहुत उत्तम हो, प्रभु तो पुरुषोत्तम है, सर्वश्रेष्ठ हैं । यह दिव्य विभूति यदि खो दी तो पुन: सहज में नहीं मिलने वाली । मैं आपकी शरण में आया हूँ । आपका बहुत उपकार है ।
युवराज ने कहा - मैं तुझे यहाँ लाया हूँ, तू मुझे क्यों छोड़ कर जाएगा ? मैं भी तेरे साथ ही तो आया हूँ । दोनो नाचते - कूदते प्रभु के चरणों में समर्पित हो गए । दीक्षा लेकर अणगार बन गए । छोटा-सा घर छोड़कर पूरी दुनिया के स्वामी बन गए । साधु घर बना नहीं और बनवाते नहीं... यतो सिंह के जैसे निर्भय ।
नागार्जुन और पादलिप्तसूरि की कथा
भगवान महावीर की अंतिम देशना से साभार
गुरु या महाराज साहेब से कुछ भी प्रश्न करना है तो अत्यन्त विनम्रता के साथ करना चाहिए । उनके कहे शब्द अंतर के हृद द्वार को खोल कर सुने ताकि आत्मीय - कर्म लोहा संपूर्ण स्वर्ण बन जाए । भक्त और भगवान के बीच कोई अंतर (बाधा) न रहे ।
स्नेह, प्रीति, श्रद्धा प्रकट होने से सुपात्र = योग्य को सब कुछ देने का मन होता है और देने के बाद अति आनंद प्राप्त होता है और पुन: पुन: दान देने का उल्लास मन में प्रकट होता रहता है । ऐसा करने से अपूर्व शक्ति प्राप्त होती है । तीर्थंकर अरिहंत के 12 गुण याद करके प्रभु को नित्य 12 खमासमणा देने से तुम्हारा सौभाग्य वृद्धि को प्राप्त होगा । हाथ-पाँवशरीर अत्यन्त स्वस्थ और सुंदर मिलेंगे । बाहुबलिजी को इसी प्रकार से केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था। भाव उत्तम रखना तुमको बाहुबलीजी का बल प्राप्त होगा ।
लैला को देखने के लिए मजनू की आखें चाहिए । बादशाह को लैला में सामान्य लड़की दिखाई दी और मजनू को पूरी दुनिया, अप्सरा दिखाई दी । दृष्टि की देन है । 'तुम अच्छे होओगे तो पूरा संघ अच्छा होगा । धर्म के नाम पर मांगना, उपाय, अशांति, खड़ी नहीं करना, लड़ाई नहीं कराना, उदाहरण देकर तुम्हारी भावना बताओ । देते, छोड़ते, समन्वयता सीखो ।
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