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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® उन्होंने चोर का हाथ पकड़ कर चौंका दिया । राजकुमार कहते हैं यहाँ बहुत भरा है, किन्तु काम का कुछ नहीं है। मुझे तो कुछ भी नहीं मिला, तुमको कभी कुछ मिल जाए। यह कहकर युवराज दीपक लगाने लगा, वहां चोर हाथ छुड़ा कर भाग गया। दूर बहुत दूर निकल गया । उसको लगा कि मैंने मालिक को ऐसे शब्द कहते कभी नहीं सुना कि “मुझे तो कुछ न मिला, कभी तुमको मिल जाय।” चोर को कोई अदृश्य शक्ति खींचकर वापिस ले आई जहां से गया था वहीं राजमहल में आकर खड़ा हो गया। जीवन में शब्द बहुत पीछा करते हैं । शब्दों में जान हो और सुनने वाले में भान (ज्ञान, समझ) हो तो पूरी दुनिया को हिला कर रख दे। तुम्हें कहाँ से कहाँ पहुँचा दे।शब्द तो ब्रह्म है । शब्द जो अनुभूति को प्राप्त करे तो सार्थक हो जाते हैं, अन्यथा शब्दों का शतरंज बुद्धि को बहलाया करते हैं। जहां आत्मा के अस्तित्व की अनुभूति शब्दों में नहीं वहाँ सिर्फ शब्दों की चतुराई दिखाई देती है। उसमें श्रद्धा, धैर्य और लगन होना चाहिए। श्रद्धांध' बनना पड़ता है। __ घर तो घर है परन्तु धूल में एकदम बैठ जाने में जो सहज आनंद की अनुभूति करते हैं वह देवराज इन्द्र को भी नसीब नहीं । वर्षा के बरसते पानी में भीगना आना चाहिए । प्रकृति की गोद में बैठना यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं । इसलिए अणगार को यह सौभाग्य सहज प्राप्त होता है। चोर को देखकर युवराज ने कहा 'मुझे विश्वास था कि तुम आओगे । वस्तुत: मुझे तुम्हें पकड़ना नहीं था। आओ ! दीपक लगाता हूँ, तुम देख लो।' चोर का उत्तर - 'नहीं महाराजकुमार ! बस करो ! दीपक हो गया, प्रकाश मिल गया, मुझे सब कुछ दिखाई दे गया। आपने ऐसी शमा जलाई है कि यह रोशनी कभी बुझेगी नहीं, न भूली जाएगी। मेरा तो रोम रोम खुल गया है। __युवराज ने कहा - 'आज मैं प्रभु महावीर का उपदेश सुनने गया था। उन्होंने प्रकाश कर दिया।" उन्होंने कहा - 'तुम्हें तुम्हारे घर में कुछ मिलने वाला नहीं है इसलिए समय रहते जागृत हो जाओ । भयभीत जीव ही घर में दुबके रहते हैं। बाहर निकलो, स्वयं के लिए घर को पहचानो। ७०७७०७000000000001145050905050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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