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________________ GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG@GOGOG@GOGOGOGOGOGOG आत्मा की अर्न्तदशा का ऐसा वर्णन नहीं मिलता, जैसा जैन ग्रंथों में है। मनुष्य बहुत अच्छा हो - अच्छा बोलता हो, दिखावे में धर्ममय बन गया हो लेकिन उसकी अंतर्भावना अत्यधिक मलीन हो सकती है । स्फटिक जैसी शुद्ध आत्मा को यह (ऐसी) भाव दशा तत्काल अपने रंग में रंग देती है । मनुष्य सब कुछ समझता है किन्तु समझने वाले को नहीं समझ सकता तो उनमें क्या खाक जाना (समझा) ? जिसने स्वयं को जान लिया उसने सब कुछ जान लिया। थोड़ा सा उसके विचारों के विपरीत हआ कि छोटे से स्वार्थ के लिए, किंचित लाभ के लिए, अहं के पोषण के लिए, कुछ लोभ-लालच और वासना या अभिमान में आकर किसी को या पूरे संघ को हानि पहुँचाने या पीड़ा पहुँचाने के लिए तैयार होने वाले असभ्य मनुष्यों से सावधान रहना । अनुमोदना के द्वारा तुम सहभागी बनोगे? अपढ़-अज्ञानीउद्धत या झोपड़पट्टी में रहने वाले आवारा लोग जैसे "जैसे के साथ तैसा” मानकर व्यवहार करते हैं । अपने देवताओं को भी कठिन लगे ऐसा करने के लिए ही आए हैं । धर्म को बदनाम करने के जो नाच करते हैं वह पापमय व्यापार को बढ़ावा देते हैं । अज्ञान में रच-बस जाने वाले होते हैं । कृष्ण, नील, कापोत ये तीन अशुभ लेश्याएँ हैं । इनसे सावधान रहना। विवशता - मजबूरी में हमने बहुत कुछ सहन किया है । अब प्रभु के बताए मार्ग पर उनकी आज्ञानुसार चलने में कुछ थोड़ा ही सहन करना है । अटल श्रद्धा और किंचित हिम्मत के साथ उनके वचनों पर विश्वास रखना आवश्यक है । श्रीपाल राजा की आत्मा पूरी तरह से श्वेत एवं सरल थी, वहीं धवल सेठ की आत्मा पूर्ण रूप से कलुषित और नाग के समान विषमयी थी। सिर्फ नाम ही धवल (श्वेत) था । कहते हैं ऐसे लोगों के सामने राक्षस भी हार जाता है। श्रीपाल ने उसे सब-कुछ देकर अपने धर्म की रक्षा की। हमें भी सब कुछ देकर यदि धर्म बचाना हो तो बचा लेने की सलाह दी है, इससे स्वयं भी बच जाओगे। वीतराग, अरिहंत, अनंतज्ञानी महावीर प्रभु, हमें जीवन के रहस्य और आत्मा का स्वरूप समझा रहे हैं कि ईर्ष्या प्रवृत्ति एवं हठवादिता से तुम क्या प्राप्त करना चाहतो हो । दूसरे की गलती निकालने का मतलब ये होता है कि तुम्हें आता समझ कम है ? जिद क्यों 9090909009090909050909090010909090909090905090900909090
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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