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©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® सकू। पंडितों ने कहा - राजन् ! हम आपसे कुछ नहीं मांग रहे हैं। हम तो सिर्फ विद्वाता का सम्मान चाहते हैं। राजा ने कहा - पंडितों ! आप लोग भी विचार करो कि इतनी जिम्मेदारीराजकाज में इतना समय कहाँ मिल पाता कि 4 लाख श्लोक वाले इतने बड़े ग्रंथ सुन सकू। आप सिर्फ सार सुना दो बस ! __पंडितों ने 40,000, 25,000, 10,000 करता करता 1,000 में से 100 श्लोकों का सार सुनने को कहा । राजा ने कहा फुरसत नहीं है । पंडित समझ गए । उन्होंने 4 लाख साहित्य श्लोक प्रमाण मर्म केवल एक श्लोक में समाविष्ट कर दिया।
जीर्वो भोजनं आत्रेयः, कपील: प्राणिनां दया ।
बृहस्पति: अविश्वासः, पांचालः स्त्रीपुमार्दवम् ॥ 1. आत्रेय नामक आयुर्वेद विशारण धन्वंतरी जैसे पंडित ने कहा - मेरे शास्त्र का सार यह है कि - पूर्व में किया भोजन पाचन हो जाए तब भोजन करें। राजा सुनकर प्रसन्न हो गया। वैद्यक शास्त्र का निरोगता का मंत्र मिल गया । (2) कपिल नाम पंडित ने कहा - धर्म का विवेचन तो अपार है किन्तु सारांश यह है कि - प्राणी मात्र पर दया करो ! दया भाव रखो। राजा ने प्रसन्नता के साथ कहा कि -थोड़े में बहुत कुछ बता दिया । (3) नीति शास्त्र के विचक्षण वृहस्पति पंडित ने कहा - राजनीति बहुत विचित्र है । छल-कपट से परिपूर्ण है । लेकिन संक्षिप्त सार यह है कि - किसी का भी विश्वास नहीं करना । सगे पिता या मित्र का भी विश्वास नहीं करना । अंत में (4) पंडित पांचाल ने कहा - कामशास्त्र का सार यही है - 'स्त्रियों के साथ कभी भी कठोर व्यवहार नहीं करना, मृदुता, अर्थात् सरलता - मधुरता का व्यवहार रखना चाहिए तभी सांसारिक जीवन सुखमय रह सकता है । राजा ने चारों पंडितों का सम्मान कर भेंट देकर आदर के साथ विदा किया।
लेश्या
उत्तराध्ययन सूत्र - अध्ययन 34वाँ हमारी आंतरिक परिणति, अंतर के भाव, कर्म बंधन में पूर्ण काम करते हैं। अंतवृत्ति को जैन शास्त्रों में, आगम ग्रंथों में 'लेश्या' नाम दिया गया है । विश्व के कोई भी धर्म ग्रंथों में
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