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सम्यक्त्व के अनेक प्रकार हैं, उसमें से 10 प्रकार यहां बताते हैं:
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1. निसर्ग रुचि : समकित पिछले जन्मों से साथ आता है, स्वभाव गत तत्व को जानते हैं । : गुरु उपदेश से जिसने श्रद्धा प्राप्त की हो ।
2. उपदेश रुचि आज्ञा रुचि
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: प्रभु की आज्ञा को सर्वस्व माने, दृढ़ श्रद्धा हो,
पेथड़शाह ने सभी आगम सुने थे ।
: श्रुत के प्रति अटूट श्रद्धा, सभी आगम पढ़ने की ललक, त्रिपदी से आगम रचने वाले ।
4. सूत्र रुचि
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5. बीज रुचि
: प्रज्ञा से परिपक्व हो, पढ़कर सुनकर सभी याद कर लें (याद हो जाए) । अभिगम रुचि : सूत्रार्थ सुनने - पढ़ने की ललक
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7.
8. क्रिया रुचि
विस्तार रुचि : समस्त पर्यायों को जानने की रुचि वाला, सर्वनय को जानने वाला । : ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, समिति - गुप्ति आदि में उपयोग रखने वाला, आवश्यक क्रिया में तत्पर
9. संक्षेप रुचि
10. धर्म रुचि
: चिल्लातीपुत्र के समान, थोड़े में बहुत कुछ समझना, दृढ़ श्रद्धा, गहरी समझ । : धर्म ही अंतिम स्वरूप है ।
थोड़े में बहुत "
उत्तराध्ययन सूत्र - अध्ययन 28वाँ
एक राजा विद्वान, परोपकारी एवं सज्जन था । दूर देशांतर से आयुर्वेद, धर्मशास्त्र, राजनीति और कामशास्त्र में निपुण 4 पंडित अपने महान ग्रंथ की रचना कर राजा को इस अद्भुत महान ग्रंथ को पढ़कर सुनाने को निकले । राज दरबार में पहुंचे । राजा से कहा महाराज हम आपको ये ग्रंथ सुनाने आए हैं। राजा ने उत्तर दिया- तुमको जो चाहिए सो ले जाओ। मैं देने को तैयार हूँ, किन्तु मेरे पास इतना समय नहीं है कि बैठकर आपके ग्रंथ सुन
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* 1. शरीर शास्त्र - पूर्व में किया भोजन हजम न हो तब तक पुनः भोजन न करना। 2. धर्मशास्त्र - जीवों पर दया करना, दयालु होना । 3. राजनीति - राजनीति में किसी का विश्वास नहीं करना । 4. कामशास्त्र - स्त्री के साथ कठोर व्यवहार नहीं करना, जितनी मृदुता उतनी ही वश में रहेगी । अर्थात् सांसारिक जीवन सुखमय, खुशबुमय रहे (वश में रखने का मतलब गलत न समझें- अन्योअन्य स्वरूप में इसे समझें )
१९७९ 107