________________
I
हम जो कुछ द्रव्य देख रहे हैं, विशेष रूप से वह एकेन्द्रिय जीव का कलेवर है । मिट्टी, चूना, सीमेंट, रत्न, खान का सोना, धातु, जमीन में होने वाले कंद, मूली, गाजर, आदि सभी कलेवर रूप ही बनते हैं जो देख रहे है । वह पृथ्वी, पानी, वनस्पति आदि में रहने वाला जीव कितने समय में ऊपर आता है, चलता-फिरता शरीर मिलता है, अनेक पर्याय बदलने के बाद मनुष्य बनता है । बुद्धि के साथ पुरुषार्थ करके शुद्ध-बुद्ध, स्वच्छ होकर सिद्धि पढ़ भी प्राप्त कर लेता है । मोक्ष भी पा लेता है ।
-
नौ तत्व का संक्षिप्त परिचय :- जीव- वह जीव, बिना जीव जो जड़, वह - अजीव । जो सत् कर्म से संसार में अच्छा फल = सारी सुविधाएँ आदि मिले वह पुण्य । पाप = जिसके परिणाम से जीव को दुःख, शोक, संताप, अभाव आदि अनेक दुःख भोगना पड़ता है - वह पाप । आश्रव = अच्छे या बुरे कार्य के द्वारा जो पुण्य या पाप जीव को लगता है वह आश्रव । संवर = जो जीव उत्तम कार्य (सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषध, व्रत - नियम आदि) करता है उस पुण्य से असद्कार्य आते रूक जाते हैं उसे संवर कहते हैं । निर्जरा = क्षमा, सरलता, तप, जप आदि से आत्मा से चिपके हुए कर्म अलग होने लगते हैं, वह है निर्जरा । बंध = दूध और पानी की तरह कर्म आत्मा से एकाकार हो जाते हैं उसे कहते हैं बंध । मोक्ष : कर्म बंध से आत्मा पूरी तरह से मुक्त हो जाती है वह मोक्ष है । मोक्ष प्राप्त प्राप्त हुआ जीव अंत में शरीर (पुद्गल) छोड़कर सिद्धि गति नामक अजर-अमर, अविचल, शाश्वत धाम में प्रवेश कर जाता है । वहाँ दु:ख रहित परमानन्दमय शाश्वत सुख-शुद्ध स्वरूप प्राप्त होता है । किन्तु याद रखना श्रद्धा अर्थात् सम्यक्त्व के बिना कुछ भी नहीं है ।
=
“तत्वार्थ श्रद्धानाम सम्यग् - दर्शनम्'
6
'मा तुष मा रुष' खुश भी न होना और रोष भी न करना । (तुष्ट मान भी न होना और रुष्टमान भी ना होना) बस ! यह सूत्र याद करते-करते मास-तुस मुनि केवलज्ञान को प्राप्त हो गए। ‘सरलता काम आ गई' श्रद्धा को उन्होंने कभी शिथिल नहीं होने दी ।
परमात्मा का ज्ञान तुमको पहले जैसा रहने ही नहीं देता परंतु बदल देता है । प्रभु ने फरमाया है - शिक्षाप्रद कहा है- “ श्रावकों को जिनवाणी - गुरुवाणी अवश्य सुनना चाहिए । धर्म श्रवण से ही आत्मा जागृत होती है ।
106