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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® समझाया सिखाया उन माता-पिता को, गुरु-शिक्षक को याद करना । उनके महान उपकार के गुणों को याद करके कहना कि आपके उपकार को हम कभी नहीं भूलेंगे । किन्तु अब कितना याद रहा या भूल गए। उसकी माथापच्ची में मत जाना । कमाई काफी हो गई उसका फल आगामी भव में प्राप्त होगा ही होगा। भगवान ने गौतम स्वामी को त्रिपदी ही दी थी - और उन्होंने उसमें से 14 पूर्व की रचना की । गणधर पदवी प्राप्त की, यह प्रबल क्षयोपशम का चमत्कार है । अभ्यास करना, पठनपाठन करना, गुरु उपासना, भक्ति, बहुमान करना, वीतराग देव की पूजन, वीतराग वाणी का श्रवण, सत्संग आदि से बुद्धि निर्मल होती है। श्रुत ज्ञान की आराधना के बिना केवलज्ञान संभव नहीं। 5. गाथा कंठस्थ करो तो 1 उपवास जितना फल मिलता है। जो गुण और पर्याय युक्त होता है वह द्रव्य कहलाता है । “गुण पर्याय वत् द्रव्यम् ।” जैसे सोने में चमक, भाटीपन, मुलायम आदि गुण हैं, इससे वह अनेक आकार में परिवर्तित होता रहता है, उसे उसका पर्याय कहा जाता है और सोना द्रव्य कहलाता है, उसी प्रकार आत्मा द्रव्य कहलाती है, ज्ञानमय है, द्रव्यमय है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र, अगुरु, लघु आदि उसके गुण हैं । विविध प्रकार के शरीर धारण करे वह पर्याय है । आत्मा अनेक योनि, शरीर, संबंध धारण करती है किन्तु आत्मा का स्वरूप वैसा का वैसा रहता है । चाहे वह सामान्य जीव-जंतु या पत्ता-फूल ही क्यों न बने। यह लोक षड्द्रव्यात्मक रूप में देखा (समझा) जा सकता है । धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल, पुदगलास्तिकाय और जीवास्तिकाय ये छः द्रव्य है । जड़-चेतन पर काल का परिवर्तन निश्चित मालूम पड़ता है । बालक युवा होता है, युवा प्रौढ़, प्रौढ़-वृद्ध और वृद्ध भी काल - मृत्यु को प्राप्त करता है । उसे काल किया कहलाता है। मुख (चेहरा) उसका निरंतर बदलता रहता है । देखते आना चाहिए । इमली के पेड़ में असंख्य पत्ते होते हैं, सभी समान दिखते हैं, किन्तु समान नहीं हैं। पुद्गल बहुत रंगीन है, पुद्गल से जीव तुरंत मोह में पड़ जाता है। 9@GO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®© 105 9@G©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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