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जो गं जाई सो सव्वं जाणई :- जो एक आत्मा को जान लेता है, वह सब जान लेता है। सम्यग्ज्ञान प्राप्त करने का है ।
* ग्रन्थों में कहा है : - रात्रि समय श्रावक परिवार के साथ बैठकर धर्म-चर्चा, कथा-वार्ता आदि करें तो 'तत्वबुद्धि' की परिणति जागृत होती है । सुई में धागा पिरोया हुआ हो तो सुई गुम नहीं होती । उसी प्रकार सूत्र कंठस्थ कर लिया जाए तो अर्थ गुम नहीं होता । जीवन भरा-भरा लगता है । स्वयं की महानता जागृत होती है ।
श्रद्धा सम्पन्न ज्ञान के बिना जीवन में अंधेरा ही है । अंधेरा देखने आंखे चाहिये । ज्ञानियों के वचन-आंखों में दिव्य अंजन रूप हैं जिससे हमारी रोशनी विस्तृत हो जाती है । बर्तन को गंदा नहीं होने देना चाहिए अन्यथा उस बर्तन में जो वस्तु रखी जाएगी वह भी गंदी हो जाएगी (खराब हो जाएगी ) ।
* कर्मों का उपशम ( उत्पन्न न होने देना) और फिर क्षय होना वह क्षयोपशम । पानी का कचरा फिटकरी घुमाने से नीचे बैठ जाता है; पानी शुद्ध निर्मल हो जाता है । कांच जैसे पानी में कचरा साफ दिखाई देता है । ठीक इसी प्रकार गुणीजनों के गुण गाकर अपनी बुद्धि को निर्मल बनाइए, कचरा सारा साफ हो जाएगा और बुद्धि स्वच्छ हो जाएगी । ज्ञानियों के प्रति अपना अत्यंत आदर भाव रखिए । कुमारपाल राजा 108 देश के अधिपति, अपने ऊपर अनेक जिम्मेदारियाँ - कठिनाइयाँ होते हुए भी जब तक 20 प्रकाश वीतराग स्तोत्र के और 12 प्रकाश योग शास्त्र के इस प्रकार कुल 32 का स्वाध्याय नहीं कर लेते तब तक मुंह में पानी नहीं लेना । अर्थात् नवकारसी के पच्चक्खाण नहीं पाते । स्वाध्याय से अनंत कर्मों का क्षय होता है । बुद्धि उत्तम और तेजस्वी होती है । अद्भुत ज्ञान संपदा की प्राप्ति होती है ।
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स्थूलभद्रजी की 7 बहनों का गजब का क्षयोपशम था । प्रबल प्रज्ञा और प्रगल्भ (तीव्र) प्रतिभाशाली बहनें थी । एक बहन ने 60 वर्ष की उम्र चारित्र लिया । ज्ञानार्जन की ऐसी लगन लगी और श्रुत एवं श्रुतदेवी सरस्वती की आराधना करी तथा महापंडित बन गई । तार्किकता में अजोड़ होने से आचार्य वृद्धवादी सूरि के अनुरूप प्रख्यात हो गई ।
प्रतिक्रमण के सूत्र द्वादशांगी का मूल है । ठवणी (लकड़ी की) पर प्रतिक्रमण की पुस्तक रखकर 3 प्रदक्षिणा और 5 खमासमणा देकर सामायिक लेना । फिर जिसने धर्म
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