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करते हो ? सत्य को स्वीकार करो । अन्य कोई आपको कहे उसके पूर्व ही स्वयं कह दो कि हाँ ! मेरी भूल थी । भूल को स्वीकार करने वाला मनुष्य कोई छोटा बच्चा नहीं होता । अपने को ऐसा विचित्र लोगों के बीच रहकर स्वयं को संभाले रखना है । संस्कार और मलिन वेश (कर्म) हमारे पूर्व भव के भी साथ आते हैं। नए रूप में, नए स्थान पर हमारा नए स्वरूप में जन्म हो जाता है, लेकिन कारनामे पुराने ही रहते ।
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तेजो लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या ये तीन शुभ लेश्याएँ हैं । प्रात:काल में गिरीराज (शत्रुंजय) ध्यान से देखें तो पूरा पर्वत सफेद-सफेद कपड़े वाले साधु साध्वियों से भरा दिखाई देता है ।
लेश्या-अर्थात् हमारे भाव ( इरादे ), कितना जानते हैं हम, कितना करते हैं हम, इसका महत्व नहीं है किन्तु हमारे भाव कैसे हैं ? यह महत्व का है । तुम कैसे हो यह समझ लो ?
भगवान कहते हैं - तुम मनुष्य को पहचानना सीखो । निकृष्ट मनुष्य से बच कर रहना । उससे तुमको कुछ भी लाभ नहीं होना है उल्टा तुम्हारे आत्म धन को बहुत बड़ा घाटा होना है । हस्त रेखा तो कभी गलत भी हो जाती है परन्तु वृत्तियों से मनुष्य की सत्य पहिचान होती है । प्रवृत्ति को समझ सको उतना समझो और गलत प्रवृति से दूर रहो । उसकी निंदा भी नहीं और वार्ता भी न करें। सिर्फ सावधानी के साथ गलत प्रवृत्ति से बचने का प्रयास करें ।
दुर्योधन कितना सक्षम था ? सौ-सौ भाई थे । वैभव अपार था । किन्तु मस्तिष्क में अहंकार भर गया । उसने पूरे कौरव वंश का विनाश को न्यौता दिया । थोड़ा देने का मना करने वाला - सबकुछ छोड़कर चला गया (मृत्यु को प्राप्त हो गया) उसके आस-पास खड़े रहने वाले दुःखी - दुःखी हो गए । अनुमोदना का प्रभाव क्या होता है ? यह जैन धर्म में सबसे अच्छी तरह से समझाया गया है । सचेत रहकर किस के पास खड़े रहना चाहिए इसकी सावधानी रखना सीखना । धन-दौलत, ऐश्वर्य का स्वामी सेठ को, नौकर के यहां नौकरी करने का मौका आया, इसके दृष्टांत हैं। झूठ को सत्य करने में आकाश-पाताल एक करने का ऐसा ही मिलता है ।
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