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________________ IIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIII 11. निराश्रवी - आश्रम बिना का शरीर नाव रूप है, जीव नाविक है । नाव आराधना का मुख्य साधन होने से संसार सागर से तिराने वाला होना चाहिए। 12. सदा उद्यमशील, क्षीणकर्मी सर्वज्ञदेव प्रभु रूप भास्कर (सूर्य) सर्वलोक में जीवों का मोह रूप अंधकार दूर करके सर्व वस्तु विषयक ज्ञान रूप प्रकाश देते हैं। 13. जहां दुःख से दुःखित जीव अकर्मक (कर्म रहित) होकर ऊपर चढ़ सके, ऐसा लोक के अग्रभाग में हमेशा के लिए निरापद स्थान है, जहां पर जन्म, जरा, मृत्यु, संताप, रोग कुछ भी नहीं है । वहाँ शिव रुप (कल्याणकारी) शरीर, मन दुःख रहित, बाधा रहित, नित्य परब्रह्म-स्वरुप अनंत सुखमय स्थान है । जिसे मोक्ष के नाम से पहिचाना जाता है वहाँ जाने वाले जीवों का भव प्रवाह पूर्णत: अंत हो जाता है । वहाँ सुखमय नित्य अवस्था-शाश्वत सुखमय आवास में निवास, शोक रहित जीवन बनता है। केशी गणधर, गौतम स्वामी का मिलन प्रसंग का अवसर बना । केशी गणधर उसके बाद 5 महाव्रतों को स्वीकार कर एक हो गए। अष्ट प्रवचन माता उत्तराध्ययन सूत्र - अध्ययन 24वाँ 5 समिति और 3 गुप्ति को अष्ट प्रवचन माता कहा है । चारित्र स्वरूप जीवन जीने से मन-वचन-काया का अनैतिक-अपराधिक व्यवहार रुक जाता है । ईर्या. भाषा. ऐषणा. आदान-निक्षेप.पारिष्ठापनिका-5समितियाँ (प्रवृत्ति) जयणापूर्वक चलना, बोलना । साधु भगवंतों को स्वयं के लिए बना हुआ-बनवाना या बिकता हुआ लेना, मंगवाना आदि । अनुमोदना आदि दोषों से रहित नौ कोटि (नौ प्रकार से) 42 दोष रहित आहार वहरना, वस्तु लेते रखते, प्रमार्जन करके ही करना । बेकार (निक्रिष्ट) वस्तु को विधिसह परठना । 5 समितियाँ अग्निरुप प्रवृत्तियाँ हैं तो गुप्तियाँ सर्व अशुभ योग की निवृत्ति रुप है और मन, वचन, काया को शुभ योग आदि में प्रवृत्ति स्वरुप है। ७०७७०७0000000000098509090050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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