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________________ Ge * मौन रहने की आदत डालने से मन को प्रतिबंधित किया जा सकता है । सत्यमय और विधिसह जीने की प्रवृत्ति हो जाएगी । समिति, गुप्ति पालन से, पानी में गिरे बिना तैरते नहीं सीखा जाता । विशेष प्रयत्न के द्वारा ही सहजता से किनारे पहुंच सकते हैं; दुनिया देखती रह जाएगी और हम अपने गंतव्य पर पहुंच जाएंगे । * भगवान कहते हैं - धर्म का पालन करने के लिए हृदय परिवर्तन जरूरी है । * जिनेन्द्र देव की भक्ति - उपासना सद्गुरु की सेवा, गुणीजनों के गुणानुवाद से अपने ज्ञानावरणीय कर्म क्षीण होता है । उनके कमजोर होने पर जो शक्ति या गुण प्रकट होते हैं उनको जैन परिभाषा में ‘क्षयोपशम' कहते हैं । पुण्य आराधना का फल रूप में अलग अलग प्रकार के क्षयोपशम सभी को होते हैं । इस क्षयोपशम से ही बहुत कुछ समझ सकते हैं । किसी को सहज रूप में, किसी को कम, किसी को ज्यादा । कोई संकेत (इशारा) मात्र से समझ जाता है । पूरा खेल समझने का है । I सब कुछ हो और ज्ञान (समझ ) न हो तो कुछ नहीं एवं कुछ भी न हो और ज्ञान (समझ) हो तो सब कुछ है । भरत चक्रवर्ती को एक अंगूली से अंगूठी उतरते ही समझ यानि बोध प्राप्त हो गया । एक राजा को सिर में एक सफेद बाल देखते ही सब कुछ समझ में आ गया । * बहुत बड़ा भाग निठल्ला या बुरा होने पर भी अच्छा लगता हो, अच्छा होता है इसलिए अच्छा लगता हो ऐसा नहीं है, किन्तु 'मन को जंचता है, इसलिए अच्छा लगता है' और बाद में वही चीज बुरी भी लगती है । अंत में उस वस्तु से छुटकारा पाने का भी प्रयास रहता है । मोह का पर्दा बहुत पतला (आर-पार) है । * * * मनुष्य बात देने की करते हैं लेकिन दृष्टि लेने पर ही रहती है । सारा सौदा है, धंधा है । क देकर अधिक लेने की चाह रहती है। मिलने में लालच में देते हैं । मिलता है इसीलिए तो देते हैं । यदि मिलना बंद हो जाए तो देना भी बंद हो जाए । I * साथ में क्या आने वाला है यह विचार आने पर मन के भाव निर्मल होने लग जाएंगे । तुम्हारी बुद्धि को स्वार्थ में मत बसाना, याद रखना, आखें बंद हुई कि सच्चाई 99
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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