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®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®@GOOG * हैरानी (आश्चर्य) इस बात की है कि जो तुमको मिला - वहाँ तुम्हारी नज़र ही नहीं
पहुंचती और जो नहीं मिला है उस पर तुम्हारी नजर लगी हुई है । नहीं मिली उस वस्तु की चाह में जो मिली हई चीज है कहीं वह भी न चली जाए ? उसका ध्यान रखना । एक बात याद रहे - महावीर देव के शासन में हमने जन्म लिया और जैन कूल के प्रभाव से
जन्म लेते ही दुनिया की उत्तम सामग्री अपने को मिल गई है। * 'उत्तमनागुण गावतां, गुण आवे निज अंग' ये गुण प्राप्त करने की अलौकिक कला है, जो सभी को नहीं आती । नमे सो परमेश्वर ने गमे (नमे वे सोने गमे)
श्रेणिक ने समकित प्राप्त किया : कथा
20वाँ महानिग्रंथ अध्ययन - उत्तराध्यय सूत्र श्रेणिक और अनाथी मुनि - श्री सुधर्मास्वामी-जंबू स्वामी को समझा रहे थे :
श्रेणिक - प्रसेनजित राजा के सौ पुत्रों में से सबसे छोटा राजकुमार था । वह जितना चंचल था उतना ही समझदार भी था । नम्र, साहसी और स्वाभिमानी था । चेल्लणा - वैशाली की सात राजकुमारियों में से सबसे छोटी थी। उसने श्रेणिक को मन ही मन वर लिया था । श्रेणिक ने उसका प्रकाशमय दिन में अपहरण किया था मगध की पट्टरानी बन गई। स्वयं को बहुत भाग्यशाली मानती थी।
संस्कारवान नारी के संसार में आत्मा की सुगंध से सब कुछ महकता रहता है । चेल्लणा रानी तो महावीर प्रभु की परम उपासिका थी। श्रेणिक के पास सब कुछ था वीतरागता का धर्म नहीं था।
एक दिन श्रेणिक ‘मंडितकुक्षि' उद्यान में गया । वहाँ क्या देखा ? वृक्ष के नीचे एक गौरवर्ण, सुंदर, सुकोमल, अद्भुत रूप सहभर देहख स्नेहसिक्त बड़े नेत्रों वाले ऐसे परमात्मा रूप देखा । राजा ने करबद्ध होकर विनयपूर्वक पूछा - कहाँ तो यह दुर्लभ जवानी और कहाँ यह वनवास, इतना कठोर व्रत तुमने क्यों लिया ? तुमको क्या कोई तकलीफ थी ?
मुनि ने उत्तर दिया - वाह राजन् ! आपने यह अच्छा प्रश्न किया । क्या कहूँ ? मेरा कोई नहीं था, मैं बिलकुल अकेला था, मेरा अच्छा सच्चा मित्र भी कोई नहीं मिला । इसलिए ऐसी युवावस्था में मैंने व्रत ले लिया।
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