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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® मस्जिद तो बना ली दम भर में, ईमान की हरारत वालों ने । दिल तो वो पुरानी पापी रहा, बरसों में नमाज़ी न बन सका । * शांति समाधि का मूल्य समझ लीजिए तो मालूम पड़ेगी कि - ओह ! शांति तो पास में ही थी मैंने हाथ आगे बढ़ाने का प्रयास ही नहीं किया । यह ध्यान रखना । जीवन पूर्ण हो जाए और शांति हाथ ही न आए, ऐसा बनाव न बने !! * घर हमारा अच्छा स्थान बन सकता है ... शांति चाहिए। * स्वयं में बसो, स्वयं में जीयो,सहन करना सीखो । सहयोग वहाँ करो जहाँ आत्म साधन का साध्य मिले । उन्मार्ग गामी न बनो । उससे कोसों दूर रहो। * तप करने से आत्मा एवं शरीर दोनों आनंदमय हो जाते हैं । सम्यग् तप हो तो ! ये तप जैन शासन की अद्भुत व्यवस्था है। * आचार्य महाराज समझाते हैं कि जिन्दगी का यह सफर तुम्हें ही पूरा करना है; जितने जल्दी चलोगे, उतने जल्दी पहुंचोगे। मगर बैठे रहने से चलना बेहतर, कि है अहले हिम्मत का मालिक यावर । जो ठंडक में चलना न आया मयस्सर, तो पहुँचेंगे हम धूप खा-खाकर सर पर ॥ अन्य की आशा छोड़ दो, कोई आने वाला नहीं, तुम्हें ही जाना है। * प्राण लेने वाली नाड़ी गले के निकट ही है; यदि उसे दबा दिया जय तो जीवन वही ठहर जाता है; किन्तु प्रभु उससे भी अधिक हमार पास है। * पूरे प्रतिक्रमण सार केवल तीन शब्दों में है - मन, वचन, काया की शक्ति ? ___ सव्वस वि देवसीय, 'दुचिंतिय दुभासिय, दुचिट्ठिय मिच्छामि दुक्कडं । दिन भर में जो कुछ भी मैंने बुरा चितवन किया हो, बुरा कुछ कहा हो, बुरा किया हो (जो पूरी तरह पाप कर्म का काम था) यह सभी मेरा दुष्कृत्य मिथ्या हो, नाश को प्राप्त हो । * तीर्थ, प्रवचन, संघ, शासन, यह सब एक ही वस्तु का नाम है । जो तारे वह तीर्थ कहलाता है, शत्रुजय आदि स्थावर तीर्थ है एवं चतुर्विध संघ वह जंगम तीर्थ कहलाता 5050505050505050505050505090920505050505050505050090050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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