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समस्त बंधन स्नेह बंधन हैं । इस पाश - बंधन को छेड़ने वाला ही आनंद की जिन्दगी जीता है और अंत में कर्मों का बंधन भी तोड़कर शाश्वत सुख का स्वामी बनता है ।
* जीव को नम्र बनने की कला भगवान महावीर ने सिखाई है । नमस्कार अनेक विघ्नों एवं विपदाओं का नाश कर आत्मा में महान गुण का सर्जन करता है । जीव विनयवान बनता है ।
* प्रभु का एक शब्द भी अर्पण बन जाता है और उसमें सत्य प्रतिबिंबित होता है, जो अकल्पनीय परिवर्तन लाता है ।
* प्रत्येक शब्द में संगीत होता है । प्रत्येक जीवन में कविता एवं प्रत्येक आंखों में प्रकाश एवं गहनता का विस्तार होता है ।
* तीर्थ, प्रवचन, संघ, शासन यह एक ही वस्तु के नाम हैं ।
* मिला है वहां नजर पहुंचती नहीं, जो नहीं मिला वहीं हमारी नजर चिपकी हुई है । नहीं मिले हुए कि झंखना में मिला हुआ हाथ से छूट न जाए ।
* प्रणाम करने से (दोनों घुटने, दोनों हथेली और मस्तक इन पांचों को धरती पर जोड़कर किया गया पंचांग प्रणिपात) अपने शरीर का आकार मंगल कलश जैसा होता है । गुण के सागर गागर बनकर मानो छलके हों इसलिए भरे हुए बिना रहे ही नहीं ।
* दुनिया में नमस्कार, प्रणाम, वंदन, भारत के सिवाय अन्यत्र कहीं नहीं है । तीर्थंकर प्रभु की देन अजोड़ ही होती है ।
भगवान भी सिद्धों को नमस्कार करते हैं ।
* प्रभु के शब्द सीधे ही अंदर आत्मा में उतर जाते हैं । कारण कि उसकी तासीर ही ऐसी है कि वह असर करती ही है ।
* आस्तित्व का ऐसा है कि सब कुछ है परंतु जो जैसा है वह वैसा आपने समझा बताया नहीं, जाना ही नहीं, या आपने देखा ही नहीं तो क्या है ? कुछ नहीं । तो
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