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राजा पूर्ण बदल गया था। परिवर्तन यह धार्मिकता की निशानी है । इससे हमारी आत्मा पूर्णरुपेण रुपांतरित हो जाती है ।
आप बहुत बचाकर संग्रह करो पर आप ही नहीं बचोगे तो बचे हुए का क्या ? आपने भले धन के ढगले किए पर आपके दोनों हाथ तो खाली ही रहे । मिले हुए धन का सुदपयोग ही धन एवं बुद्धि की सफलता है, अन्यथा यह धन बोझ है । भगवान महावीर की वीतरागता पर दृष्टि केन्द्रित करो फालतू सब कुछ छोड़ दो । थोड़ा अंतर्मुखी बनने से बहुत कुछ समझ में आने लगेगा ।
आप आपके अंतर को सरल, बुद्धि को निर्मल रखना । कितना जानते हो इसका महत्व नहीं, आपका इरादा क्या है इसका महत्व है । परलोक इसी इरादे पर उतिष्ठ है ।
ज्ञान नो महिमा
'अंतिम देशना' में भगवान महावीर कहते हैं :
* जीव जन्मता और मरता है, खाता-पीता है और पुनः भूखा हो जाता है । हंसता है और पुन: रोता है । चढ़ता है और फिर गिरता है । राजा बनकर भिखारी भी बनता है । इन सबसे छूटने का एक मार्ग है - सम्यग्ज्ञान दर्शन - चारित्र रूपी मोक्ष मार्ग ।
* ज्ञान रहित जीवन मात्र है । इस हेतु विवेक बुद्धि चाहिए । मिट्टे के ढगले में स्वर्ण छुपा है वैसे कर्मरूपी बादल में सूर्य जैसी आत्मा छुपी है । पुरुषार्थ करो, बादल बिखर जायेगा । प्रतिदिन सूत्रों का अभ्यास / अध्ययन करोगे तो थोड़े समय में निहाल हो जाओगे । शरीर को संवारने में ही सब कुछ व्यय न कर देना, थोड़ा आत्म का चिंतन करो ।
* नान्नहा जंपंत्ति तित्थयरा । तीर्थंकर कभी भी अन्यथा ज्ञान बिना बोलते ही नहीं । * तमेव सच्चं निसंकं जं जिणेहिं पवेईयं । यही सत्य, निःशंक, नि:संदेह है जो जिनेश्वर प्रभु ने फरमाया है ।
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