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©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® * स्वाध्याय से ज्ञान पढ़ने से श्रुत धर्म की आराधना होती है । एक उत्तम अनुष्ठान होता है।
जबरदस्त उत्तम क्षयोपशम होने से मति बहुत उत्तम एवं सतेज होती है और उससे अद्भुत ज्ञान संपदा प्राप्त होती है । याद है ना ? स्थूलिभद्र महाराज की सात बहनों को गजब का क्षयोपशम था । पहली एक बार, दूसरी दो बार सुने, और सब ही याद रह
जाता, इस प्रकार सातवीं बहन सात बार सुने और सब कुछ याद। * सामायिक कैसे लेना ? ज्ञानोपार्जन करना है ? द्वादशांगी के मूल रूप सूत्रों की पोथी,
ग्रंथ सापड़ा (थमड़ी) पर रखकर तीन प्रदक्षिणा एवं पांच खमासमणा देकर सामायिक
लेना।
* मति (बुद्धि) सही नहीं होगी तो श्रुत भी सही नहीं चढ़ेगा । कुमति से सब खराब ही
लगेगा। खराब अच्छा लगेगा, सबको गलत कर देगा । जैसी मति वैसी गति। * काल सतत परिवर्तन स्वभावी है । जीव एवं जड़ पर काल का परिवर्तन साफ दिखता है।
हमारा चेहरा प्रतिदिन बदलता, देखने की कला होनी चाहिए। * जो ज्ञान या ज्ञानी की अवहेलना - अवधारणा करता है वह परभव में गंदा, गरीब, बुद्धि
रहित या दुष्ट बुद्धिवाला, तोतला, बोबड़ा, रोगी एवं अपंग होता है । श्रद्धाहीन को ज्ञान कभी फलता नहीं । मा रुष मा तुष (नाराज नहीं, प्रसन्न भी नहीं), अटल श्रद्धा में 'मासतुष' रटते रहे । सरलता के योग से केवलज्ञान पाया, ज्ञान की महिमा श्रद्धा से
सजीव बनती है। * परमात्मा का ज्ञान आपको पहले जैसा रहने नहीं देता है । तत्काल बदल देता है ।
आपको संयमी बना देता है । मानो कि दूध में से घी बन गया हो । अब घी का दूध-दही
नहीं बनता । यह इसमें मिल ही नहीं सकता। * जो सब कुछ यहाँ छोड़कर चले जाना है तो मजे से जाओ । पश्चात् ज्ञात होगा कि
आवी रूड़ी भक्ति में पहेला न जाणी संसार नी माया मा वलोव्यु में पाणी ।
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