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तेरी जुदा पसंद है, मेरी जुदा पसंद,
___ तुझको खुदी पसंद है, मुझको खुदा पसंद । * भगवान कहते हैं : अच्छी सुंदर पद्धति एवं प्रवृत्ति के चाहक बनना । गुणों के ग्राहक
बनना । उत्तम करनी के आशिक बनना । मिली हुई वस्तु, क्षण, अवसर को सार्थक करना । सुखी होकर खुश होना। महावीर जन्म या निर्वाण निमित्त विचारने जैसा तत्व ज्ञान
अनाथता का सत्य स्वरूप हमारी कीर्ति, सम्मान का महत्व, हमारा ठपका, रुआब, धन की ढगलियाँ एवं हमारी हुकूमतों सभी को कितना महत्व देते हैं ?
आखिर तो सब कुछ खोखली मुट्ठि के जैसा दम रहित है । हम कितना गलत और असमझता भरा करते हैं ? भगवान से अधिक आंगी महत्व की हो गई। ऐसा तो नहीं होना चाहिए, परन्तु हमने कर दिया । माल महँगा हो गया और मालिक कोड़ियों के।
मूर्ख व्यक्ति खुश होकर बताते हैं, यह मेरा है, यह हमारा है। वाह वाह यह सब कुछ तेरा है तो तू किसका है ? इसकी इसे खबर नहीं । आपने धन-पद-सत्ता को स्वयं से भी अधिक महत्वपूर्ण स्थान पर बैठा दिया है। ___ अनाथी मुनि श्रेणिक को यह सब समझा रहे हैं । मुनि के पास कुछ भी नहीं है और राजा के पास बहुत कुछ है । यह बहुत कुछ ही तुम्हारे दुश्मन पैदा करेगा, बहुतों को नाराज करेगा।
जबकि समग्र अस्तित्व मुनि से प्रसन्न है । वृक्ष-झरना, पशु-पक्षी, सरिता-सागरपर्वत, चंद्र-सूर्य-तारे, फूल-कलियाँ अरे पवन और किरणें भी।
अज्ञानी व्यक्ति मानभंग करके प्रसन्न होते हैं । श्रेणिक धारते तो मुनि को नीचा कर सकते थे परंतु उसमें धार्मिकता का उदय होने लगा था । धार्मिकता स्वयं का विषय है । उससे परम शांति तथा अद्भुत शक्ति मिलती है।
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