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©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OG * हमारा सत्य स्वरूप तो अंतस: में छुपा है । बाध्य दृष्टिगत रूप पूर्णतः जुदा होता है ।
आप अभ्यंतर-बाध्य अवस्था को देखो और उस अनुरूप स्वयं को ढालने की कोशिश
करो। आपको अवश्य सफलता मिलेगी। * धर्म रहित सब कुछ व्यर्थ है । प्राण एवं सुगंध बिना का है। * दृष्टि रहित दृश्य कुछ भी नहीं, दृष्टि रहित नेत्र किस काम के । * जिस पथिक के पास भाता (नाश्ता) न हो वह मार्ग में भूखा, प्यासा रहता है। धर्म रहित
परलोक जाता जीव महापीड़ा का शिकार होता है। कोई एक फटा हुआ कपड़ा भी किसी को देता नहीं और दूसरा सम्पूर्ण राज्य छोड़ने की बात करता है । यह बहुत गहरी समझ की बात है । यह कोई आकस्मिक नहीं । कितने भवो पूर्व प्रारंभ किए कृत्यों का परिणाम है । उन्होंने एक मुनि को देखा, जाति स्मरण
ज्ञान हुआ।तंत्र, राजमहल, ऐश, आरामी, ऐश्वर्य सब कुछ स्तंति हो गया। * याद रहे, शनैः-शनैः बात बनती है और आयुष्य पूर्ण हो जाता एवं पुन: नव अवतार,
नये दुःख । संयम लेवें सुखी होवें। * ममता अनेक भवों की अभ्यासी होती है। * धर्म के, साथ - सहकार बिना मानव अकेला हो जाता है । कारण, धर्म बिना सब कुछ ___ व्यर्थ है । समय की बरबादी होती नहीं परंतु स्वयं की होती है। * हमें उत्कृष्ट, उम्दा संयोग लाखों वर्ष पश्चात् प्राप्त हुए हैं । गवाँ मत देना । एक बार जीवन
का अमृत सहारा के रेगिस्तान में खो गया तो पुन: हाथ में नहीं आएगा।
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