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आपकी बात सत्य है । यह सब कुछ ही है और था । परन्तु हमारी दृष्टि वहाँ तक कभी पहुँची नहीं। हमें देखना नहीं आता । तुमने हमें देखना सिखाया । मैं उन्हें भी कहती हूँ और उन्हें दिखाती हूँ। वह महिला झोपड़ी की ओर दौड़ी। __ ऐसा है अस्तित्व । सब कुछ है पर जैसा है वह वैसा तुम्हें दिखाई देता नहीं । तुमने देखा नहीं, जाना नहीं । तो क्या है ? कुछ नहीं । तो फिर, तुम भी क्या हो ?
मनुष्य को बहुत ही गहराई से जानना समझना चाहिए । ज्ञानियों की बातों, संतों की बातों, तीर्थंकरों की बातों में कहा गया सब कुछ करने जैसा है। * सम्पूर्ण शरीर में सर्वाधिक महंगी दुर्लभ वस्तु आँखे हैं । परन्तु दृष्टिविहीन नेत्र किस
काम के । दृष्टि हेतु भगवान ने समझाया है कि तुम्हारी दृष्टि को सम्यग् बनाना । आपको थोड़ा भी देखना आ जाए तो नयन सफल हो जाएंगे । जीवन सफल हो जाएगा । देखने की और समझने की एक कला है । कला विहिना : पशुभिः समाना: कला रहित मनुष्य पशु समान कहा गया है । साहित्य, विद्या, संगीत, नृत्य, पांडित्य जैसा जीवन में कुछ भी नहीं । ऐसे जीवों के समीप सदा अशांति, असंतोष, उपद्रव, क्लेश एवं हमेशा की बला है । हम जैसे हैं वह, हम स्वयं के
कारण हैं। * पैसे के पीछे खुवार (नष्ट) नहीं होते । रूपया (डॉलर) तुम्हारा पूर्ण रिक्त है । जिस
दिन सत्कर्म में उपयोग होगा उस दिन ही वह भरेगा। * अवतार नया मिलता है परन्तु धंधा तो पुराना ही होता है । इस भव में जो किया
होगा वही परभव में भी प्राय: करोगे । यहां इकट्ठा ही किया होगा तो आने वाले भव में मूषक/मधुमक्खी या किसी धन भंडार के सर्प बनने में कोई बड़ी बात नहीं । आवश्यकता बिना भी दुःखी होकर पैसे के लिए दौड़धाम करते हो ? धर्म पर भरोसा रखो यह आपको सब कुछ देगा।
खुद अपनी कैद के बंध, आदमी तोड़े तो हम जाने, __ पराई कैद से आजाद हो जाना तो आसाँ है ।
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