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मन बिगड़े उसे सुधारने का शास्त्रीय उपाय है ; कर्मधारा के सामने उपयोग कर, मन को ज्ञानधारा से समझाकर कल्पना शून्य बनाओ । ज्ञानधारा अर्थात् समझ । अग्नि पर नीर डालने जैसे समझ।
ज्ञानधारा - ज्ञानदृष्टि धीरे-धीरे अभ्यास से आती है और आधि-व्याधि-उपाधि से मुक्त करती है, करती है और करती ही है । जीवन में वात्सल्य एवं प्रेम के झरने प्रवाहित करती है। प्रसन्नता प्रदान करती है । शांति से परमार्थ रूप यह मार्ग सचोट एवं असरकारक है।
भगवान महावीर की अंतिम देशना
चित्रकार की आँखों दृष्टि थी अनादिकाल से संतों, सद्गति एवं सुकृत का मार्ग विद्यमान है । परन्तु हमने जाना नहीं, पहचाना नहीं । प्रभु की वाणी संसार की श्रेष्ठ वाणी है । यह कल्याणी है, निर्वाणी है।
समुद्र किनारे प्रतिदिन सांयकाल एक चित्रकार कहीं से आता है । फलक पर पीछी से कोई चित्र बनाता है। नजदीक ही माछीमार के झोपड़े थे। उसमें रही एक महिला अत्यन्त ही कौतूहल-कौतूकपूर्वक इस चित्रकार को देखती । एकाग्रता से एवं किसी गजब के आत्मविश्वास से चित्रकार अपनी चित्रकारी करता है । प्रतिदिन संध्या होती है और वह अस्त होते सूर्य को देखता । स्वयं अंकित की रेखाओं को देखता, निहालता एवं मनोमन प्रसन्न होता रहता । सूर्यास्त होते चित्रकार चित्र पर वस्त्र ढंककर एक ओर रखकर चला जाता। उस महिला का आश्चर्य, अचंभा उसे चंचल कर देता । उसे उस चित्रकार पर हास्य आता । इसमें क्या है ? यह देखकर किसे हर्ष होगा ? उस महिला को चित्र पूर्ण रूप से दृष्टिगत नहीं होता। चित्रकार गया और वस्त्र ऊँचा किया तो देखकर .... विस्मय।
सप्ताह दस दिन बीते ... संध्या ने अद्भुत श्रृंगार किये थे । भाव भीना हो जाए ऐसा कुदरत का सौंदर्य सौलह कलाओं से खिला हुआ था । सूर्य पश्चिम आकाश की क्षितिज पर आकर खड़ा 90GOGOGOGOGOGOGOG©®©®©®©®©®0 79999@GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGO