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अद्भुत ध्यानयोगपूर्ण प्रभुदर्शन
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प. पू. आचार्यश्री भुवनभानु सूरीश्वरजी म.सा.
आत्मा के चिकने मल को तोड़ने के लिए ध्यान की कठोर साधना बताई गई है । ध्यान जैसी कठोर साधना अन्य है ही नहीं । ध्यान उपयोग की धारा को सतेज करता है । विद्युत जैसी ताकत देता है ।
अनेकानेक इन्द्रिय विषयों में उछलता मन, क्रोधादि कषायों में घूमता मन, तत्व में सहज रूप से स्थिर एवं शांत-स्वस्थ बनता नहीं तब तक इस मन को अंतिम आत्मा की स्थिरता के मार्ग पर कैसे वापस लाऊँ ?
1. नवकार मंत्र का जाप इस दिशा में महाउपयोगी है परन्तु वर्षों से जाप करते रहने के पश्चात् भी मन कहाँ से कहाँ भागता है । अन्य कोई उपाय है ? हाँ ।
श्री जिनेश्वर देव के दर्शन का योग अद्भुत है । शनैः-शनै: मन को स्थिर, शांत, I स्वस्थ बनाने का अभ्यास इसमें से मिल सकता है । शास्त्रीय विधि सहित दर्शन किए जाए तो उसमें अनेक तत्वों ऐसे हैं कि जीव के विषय - आकर्षण, विषयों का उन्माद, कषाय उकलाट एवं मानसिक चंचलता को कम करते हैं । विधि सहित जिन दर्शन की प्रक्रिया में अद्भुत ध्यान योग किया जा सकता है, जिसमें ऐसे रसायण भरे हुए हैं कि जो मन को 'प्रसन्न' करते हैं ।
जिन दर्शन की प्रक्रिया विधि सहित शास्त्रानुसार :
मंदिर जाने का मन करे तो चउत्थतणुं फल होय । चउत्थ=चार, अभक्त = उपवास । मंदिर जाने का मन करे वहीं पर उपवास द्वारा जो पापक्षय एवं पुण्य उपार्जन का लाभ हो, वह लाभ मिलता है ।
शास्त्र यह भी कहते हैं कि एक नारकी का जीव 100 करोड़ वर्षों तक नरक की वेदनाएँ भोग कर जितने कर्म खपाता है उतने कर्म का नाश एक उपवास से होता है ।
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