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छः आवश्यक
1. सामायिक ( चारित्राचार) : मुख्य चार प्रकार ।
सम्यक्त्व सामायिक
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मिथ्यात्व का मेल दूर होते जिनवचन में श्रदा । जिनोक्त तत्व का बोध - आत्म रमणता । आंशिक विरति द्वारा आत्म रमणता । सर्वांश विरति द्वारा आत्म रमणता ।
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श्रुत सामायिक
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देशविरति सामायिक :
सर्वविरति सामायिक :
2. चतुर्विंशति स्तव - दर्शनाचार : ( चउविसत्थो)
द्रव्य स्तव
उव्य द्रव्यो - पुष्प, चंदन, फल आदि ।
भाव स्तव
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परमात्मा के गुणों की स्तवना ।
3. वंदन (ज्ञानाचार) : गुणवान आत्माओं की भक्ति सत्कार, विनय आता है ।
4. प्रतिक्रमण (पाँच आचार की शुद्धि) : प्रमाद में रहकर पर स्थान के प्राप्त जीव स्वस्थान के प्रति अशुभ योग में से शुभ योग के प्रति अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार द्वारा लगी हुई दोष की गर्हा ।
5. कायोत्सर्ग ( चारित्राचार) : मैं वह आत्मा, शरीर नहीं । ममत्व का त्याग ।
6. पच्चक्खाण (प्रत्याख्यान) : वीर्याचार, तपाचार |
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त्याग द्वारा किए अनुष्ठानों, आश्रव को रोककर संवर की वृद्धि करते हैं । आहार संज्ञा को शिथिल कर, अणाहारी स्वरुप का संचार करते हैं ।
पांच आचार इस प्रकार हैं :- ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य ।
परस्पर संबंध :- करेमि भंते - सामायिक चउविसत्थो, तस्स भंते - वंदन, पडिक्कमामि निंदामि गर्हामि - प्रतिक्रमण, अप्पाणं वोसिरामि - कायोत्सर्ग, सावज्ज जोगम् पच्चक्खामि-पच्चक्खाण ।
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