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________________ १७८ ] કવિકુલકિરીટ ત્યારબાદ ઉપક્ત મુનિશ્રીએ ઘણું અસરકારક ભાષણ કરી પિતાના ગુરૂવર્ય શ્રીમદ્ વિજયકમલસુરીશ્વરજી મહારાજ સાહેબની આજ્ઞાથી માનપત્રને સ્વીકાર કર્યો હતે. આ કાર્ય થયા પછી આચાર્યનું સમયોચિત સંક્ષિપ્ત ભાષણ તેઓશ્રીની આજ્ઞાથી મુનિરાજ શ્રીમદ્ માનવિજયજી મહારાજે વાંચી સંભળાવ્યું હતું જે નીચે મુજબ આપવામાં આવે છે. मुनि लब्धिविजयजी! आज श्री जैन श्वेतांबर श्री संघने तुमको जो मानपत्र दिया है सो इन्होने गुणानुरागसे यह काम करके अपनी फर्ज अदा की है। योग्य श्रावकांका कर्तव्य है कि हमेशह योग्य गुणीको देख भविष्यमें उन्नतिकारक बनाने के लीए उसकी कदर करें। जिस कोममें योग्य व्यक्ति की कदर नहीं होती वहकोम कभी उन्नतिके शिखर पर चढ नहि सक्ति है। इस लीए यहां उपस्थित श्री संघका कर्तव्य अति श्रेष्ठ है। परन्तु पदको लेनेवाला पदको प्राप्त करके पदानुकुल कार्य करता रहे तबही पदप्रदाताओं का परिश्रम सफल हो सकता है। इसलीए जैनरत्न व्या० वा. के पदारुढ मुनि लब्धिविजयजी ! में तुमको यह हित और मित शब्दोसे कहता हूं कि तुमको यह पद श्री संघकी तर्फसे मिला है सो इसकी सफलताकी तर्फ हमेशह ध्यान रखना। शुद्ध मुनि मंडलमें तथा सुश्रावक वर्गमें जिस प्रकार प्रेमभाव बढे ऐसे काम करने । मांसाहारी जीवोंको मांसाहारसे जिस प्रकार असीम परिश्रम उठाकर पंजाबदेशमें तथा मुल्तान आदि शहेरोमें हटाते रहे हो इसी प्रकार भविष्यमे भी जहां जहां तुम्हारा विहार होवे वहां वहां मांसाहारका खंडन करके शुद्ध दया धर्मका प्रचार करना। जैसी तुम्हारेमें इस समय विद्या तथा शान्ति देखनेमें आती है इससे भी अधिक
SR No.007266
Book TitleKavikulkirit Yane Suri Shekhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhisuri Jain Granthmala
PublisherLabdhisuri Jain Granthmala
Publication Year1939
Total Pages502
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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