________________
कल्प
सत्र
दशाश्रुतस्कंध-अध्ययनं-८ "कल्पसूत्र"- (मूलं+वृत्ति:)
....... व्याख्यान [७] .......... मूलं [२०४] / गाथा [२...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..दशाश्रुतस्कंध-अध्ययन-८ "कल्पसूत्र" मूलं एवं विनयविजयजी-रचिता वृत्ति::
प्रत सूत्रांक [२०४] गाथा ||२..||
निर्वाण, तिवारपछी त्रण वर्ष साडा आठ मास बेतालीस हजार वर्ष ओछां एक लाख कोड सागरोपमें श्रीजिनानां श्रीवीर निर्वाण, तिवारपछी नवसो एंसी वर्षे पुस्तकवाचनादि ॥४॥
पुस्तकलि| श्रीसंभवनाथना निर्वाण पछी दश लाख कोडी सागरोपमें श्रीअभिनंदन निर्वाण, तिवारपछी त्रण वर्ष
खनस्य चा
न्तराणि साडाआठ मास बैंतालीस हजार वर्ष ओछां एवा दश लाख कोडी सागरोपमें श्रीवीर निर्वाण, तेवारपछी नवसो एंसी वर्षे पुस्तकवाचनादिश्रीअजितनाथना निर्वाणधी त्रीस लाख कोडि सागरोपमें श्रीसंभवनाथ निर्वाण, तेवारपछी त्रण वर्ष साहाआठ मास तथा तालीस हजार वर्ष ओछां एवा वीश लाख कोडी| सागरोपमें श्रीवीर निर्याण, तेवारपछी नवसो एसी वर्षे पुस्तकवाचनादि । श्रीकृषभना निर्वाणथी पचास लाख कोडि सागरोपमें श्रीअजित निर्वाण, तेवारपछी त्रण वर्ष साडा आठ मास तालीस हजार वर्ष ओछ एवा पचास लाख क्रोड सागरोपमें श्रीमहावीर निर्वाण, तेवारपछी नवसो एंसी वर्षे पुस्तकवाचनादि १॥ I अथास्याभवसर्पिपयां प्रथमधर्मप्रवर्तकत्वेन परमोपकारित्वात् किञ्चिद्विस्तरता श्रीऋषभदेवचरित्रं प्रस्तीति-18
(तेणं कालेणं ) तस्मिन् काले (तेणं समएणं ) तस्मिन् समये (उसभे गं अरहा) ऋषभः अर्हन् , कीदृशःII (कोसलिए ) कोशलायां-अयोध्यायां जातः कौशलिकः (चउउत्तरासाढे अभीइपंचमे हुत्था) चतुर्षु उत्तरा-1|| राषाढा यस्य स चतुरुत्तराषाढः अभिजिन्नक्षत्रे पञ्चमं कल्याणकं अभवत् ॥ (२०४)॥
दीप अनुक्रम [२००]
... अथ श्री ऋषभदेव-चरित्रं विस्तरेण वर्णयते
~309~