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आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
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दीप
अनुक्रम
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श्रीआव श्यकमल
य० वृत्तौ उपोद्घाते
॥ ४६७ ॥
आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः + वृत्तिः) भाग-४
अध्ययनं [१], निर्युक्तिः [ ८४७ ], वि० भा० गाथा [-], भाष्यं [१५०...], मूलं [- / गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र-[१] “आवश्यक" निर्युक्ति एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्तिः
कुलं गयाणि, ते य कलसा, तहाहि सो उत्तरमाहुरो वाणितो उबगिर्जतो अन्नया कयाइ मज्जइ, तरस मज्जमाणस्स ते कलसा आगया, ततो सो तेहिं चैव मज्जितो, भोयणवेलाए तं सर्व भोयणभंडं उवडियं, सोऽवि साहू भिक्खं अडंतो तं घरं पविट्टो, तत्थ सत्थवाहस्स धूया पढमजोवणे वदमाणी वीयणयं गहाय अच्छइ, ताहे सो साहू तं भोयणभंडं पेच्छइ, सत्थवाहेण भिक्खा नीयाविया, दिण्णेऽवि अच्छा, ताहे पुच्छइ किं भववं ! एवं चेडिं पलोवेह ?, ताहे सो भणइ, न मम चेडीए पओयणं, एवं भोयणभंडगं पलोएमि, ततो पुच्छइ-कतो ते एयस्स आगमो ? सो भणइ-अज्जयपज्जया गयं, तेण भणियं सम्भावं साह, तेण भणियं मम व्हायंतस्स एवं चैव पहाणविही उबडिया, एवं सवोऽवि जेमणवेलाए भोयणविही, सिरिघराणिवि भरियाणि दिट्ठाणि, अदिट्ठपुवा य वाणियगा आणेत्ता देति, ताहे सो भणइ एवं सवं मम आसि, सो पुच्छर- किह ?, ताहे साहू कहे पहाणादि, जइ न पत्तियसि भोयणपत्तीखंड पेच्छ जाव ढोइयं, झडत्ति लग्गं, पिडो नामं साहइ, ताहे नायं एस सो जामाउओ, ताहे सो उट्ठित्ता अवयासेऊण परुष्णो, पच्छा भणइ एवं सवं तत्र तदव त्थं अच्छइ, एसा ते पुवदिना चेडी, पडिच्छ पंति, सो भणइ पुरिसो वा पुवं कामभोगे विष्वजहह, कामभोगा वा पुरिसं पुढं विप्पजर्हेति, ताहे सोऽवि संवेगमावन्नो, ममंषि एमेव विश्वजहिस्संतित्ति, पञ्चइतो, तत्थ एगेण विपओगेण सामाइयं लद्धं, एगेण संजोगेण रुद्धंति ७ ॥
इयाणिं बसणेणं, दो भाउया सगडेण वच्चंति, तत्थ चकवुंडा सगडबडाए लोलड, महल्लेण भणियं वत्तेह मंडिं, इयरेण वाहिया भंडी, सा सन्नी सुणेइ, ताहे चकेण छिन्ना, मया, इत्थी य जाया हस्थिणउरे नगरे, सो नहहतरागो पुर्व मरित्ता
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संयोगवि योगे मधुरावणिजी
॥४६७॥
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