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________________ आगम (४०) आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्तिः) भाग-४ अध्ययनं [१], नियुक्ति: [८४७], वि भागाथा [-1, भाष्यं [१५०...], मूलं - गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक लिया जाव संकलप्पहारा दिट्ठा, ताहेरण्णा सा देवी हत्थी मिठो य तिण्णिवि छिन्नकडए विलइयाणि, मेंठो भणिओ-एत्थ अप्पतइओ गिरिप्पवायं देहि, हथिस्स दोहिवि पासेहिं वेलुग्गाहा ठविया, जाव एगो पादो आगासे कतो ताव जणो भण-है WI-किं एस तिरिओ जाणइ ?, एयाणि मारेयवाणि, तहावि राया रोसं न मुयइ, ततो दो पाया आगासे कया, तइयवाराए| तिणि पाया आगासे कया, एगेण पाएण ठिओ,लोगेण अकंदो कतो-किं एयं हत्थिरयणं विणासेह य, रणो चित्तं ओल्लिदाय, आर्द्र जातमित्यर्थः, भणितो-तरसि नियत्तेउं ?, भणइ-जइ अभयं देह, दिन्नं, तेण नियत्तितो अंकुसेण, जहा भमित्ता थले ठितो, ताणि ओयारिता निबिसयाणि कयाणि, एगत्थ पच्चंतगामे सुण्णघरे ठियाणि । तत्थ य गामेलयपारद्धो चोरो तं सुण्णघरं अतिगतो, ते भणंति-बेढिउं अच्छामो, मा कोइ पविसउ, गोसे घेत्थामो, सोऽवि चोरो लुकतो, किवि तीसे फासो वेइतो, सा दुक्का भणइ-को सि तुमं?, सो भणइ-चोरोऽहं, तीए भणियं-तुम मम पती होहि जेण एवं साहामो, जहा एस चोरोत्ति, तेण पडिवन, पभाए लोगेण मेंठो गहितो, सूलाए भिन्नो, सा चोरेण समं बच्चइ जाव अंतरा नदी, सा तेण भणिया-एत्थ सरत्थंवे अच्छ जाव अहं एयाणि वत्थाणि आभरणाणि य उत्तारेमि, सो गतो, उत्तिन्नो पधावितो, सा भणइपुण्णा नदी दीसह कायपेजा, सर्व पियाभंडग तुझ हत्थे । जहा तुम पारमतीतुकामो, धुवं तुम भंड गहाउकामो ॥१॥ सो भणइ-चिर संथुतो वाऽलिअसंधुएण, मेल्लेवि तावं धुव अडुर्वण । जाणप्पि तुज्झ प्रकृतिस्वभावं, अन्नो नरो को तुह पीससेज्जा ॥१॥सा भणइ-किं जाहि १, सो भणइ-जहा एसी मारावितो एवं ममंपि कहंचि मारावेहिसि । इयरोऽवि IM मेंठो तत्थ सूलाए विद्धो उदगं मग्गइ, तत्थेगो सहो, सो भणइ-जइ नमोकारं करसि तो देमि, सो उदगस्स अट्टाए गतो, ANGACASSEKX दीप अनुक्रम ORECARSACRACKERAXX ~47~
SR No.007204
Book TitleAagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages327
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size27 MB
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